ॐ श्री परमात्मने नमः
पूज्य महाराज स्वामी श्री राजेश्वरानंदजी ईश्वरीय प्रेरणा से प्रेरित होकर योगसाधना में २२ साल की उम्र से ही पूर्णरूपेण विरक्त हो समर्पित हो गए। इतनी कम उम्र में भी आप योग के गूढ़ रहस्यों को जानने के लिए अपने सद्गुरु को समर्पित हो अनवरत सेवा एवं भजन में लगे रहे। साधना की शिखर को दिन प्रतिदिन छूते रहे।
आप ईश्वरीय निर्देशन एवं सद्गुरू के मार्गदर्शन में चलते हुए ब्रह्मचिन्तन में निरन्तन प्रवृत्त रहे । आज आपके सानिध्य में साधक एवं भाविक भक्तगण, श्रीमद्भगवद्गीता, रामायण, वेद -उपनिषद के गूढ़ रहस्यो को जानने के लिए मन ,कर्म एवं वचन से सदैव समर्पित रहते है।
भारतवर्ष में ऐसे बहुत कम महापुरुष है जिन्होंने भारतीय सनातन संस्कृति, विश्वधर्म के वास्तविक स्वरुप एवं अध्यात्म को बहुत ही सरलतम ढंग से समाज के समक्ष रखा।
पूज्य महाराजश्री भारतीय ऋषि परंपरा का पूर्णरूपेण पालन करते हुए ईश्वरीय साधना के प्रसस्त पथ को समाज के समक्ष अत्यंत सरल एवं सुबोध ढंग से प्रस्तुत करते रहते है, जिससे समाज पालन कर अपने परम लक्ष्य को प्राप्त कर सके।श्री महाराज जी नियमित सुमिरन ,सेवा एवं सत्संग को शास्त्रोक्त आधार मानकर इस पर हमेशा बल देते रहते है।
इसमें विविध त्यौहार, व्रत एवं उपवास के आध्यात्मिक गूढ़ रहस्यो को सत्संग के माध्यम से समाज कल्याण हेतु प्रस्तुत किया गया है।
प्रस्तुत वेबसाइट इन्ही विचारो को समाज के समक्ष उनकी आवश्कतानुसार मिले इस कारण से बनाया गया है
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अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्वज्ञानार्थदर्शनम्।
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥
गीता १३/११
साधना
ईश्वरीय मार्गदर्शन में चलकर ईश्वर को जानना यह है हिंदू धर्म की साधना।
हिंदू कौन ??
विश्व का कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म का हो अगर हृदयस्थित ईश्वर के प्रति समर्पित है तो वह हिंदू है।
रामचरित मानस
राम के चरित्र जो हमारे अंतःकरण में प्रसुप्त है,जिस दिन से यह जागृत होकर राम पर्यन्त दूरी तय करती है,यही साधनाक्रम रामचरित मानस है। यह प्रत्येक व्यक्ति के अंतःकरण की घटना है। राम और रावण दोनों एक ही व्यक्ति के अंदर कार्य करते है।
सद्गुरु
ईश्वर के मार्गदर्शन में चलकर ईश्वर को जान लेना और उसी में सदा स्थित रहनेवाला संत ही सद्गुरु है।
धर्म का मूल
धर्म का मूल ध्यान है ,जिस धर्म में ध्यान को महत्व नहीं दिया जाता वो कोई धर्म नहीं है,यह भारत के ऋषियों की देंन है।
भक्ति योग एवं ज्ञानयोग
सद्गुरु शरणागति एवं मार्गदर्शन में चलनेवाला साधक भक्तियोग एवं अपनी बुद्धि से चलनेवाला और निर्णय लेनेवाला साधक ज्ञानयोग के अंतर्गत आता है। पूरा विश्व के चिंतनधाराये इन्ही दो के अंतर्गत आते है।
AMRIT KATHA
तात स्वर्ग अपवर्ग सुख घरी तुला एक अंग तूल न ताहि सकल मिली जो सुख लव सत्संग
SANT DARSHAN
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:।।
AMRIT VAANI
बिनु सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई
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