भगवान श्री राम का क्या स्वरुप हैं,और राम का जन्म क्या हैं?
रामनवमी के उपलक्ष्य में हम बताएंगे। कुछ ऐसी बातें हैं, जिसको हमारे समाज ने नहीं जाना, और उसके न जानने के कारण, बहुत ही बड़ी हानि इस हिंदू समाज को हुई। बहुत सारे प्रश्न हैं, जैसे धर्म है, वर्ण व्यवस्था है, वैसे ही एक प्रश्न हैं, राम कौन हैं?
वैसे हम सभी भगवान श्री राम के विषय में जानतें है। राम कथाएं भी होती हैं, और देश का बच्चा, बच्चा भगवान राम के जीवन वृक्ष से परिचित है। लेकिन फिर भी रामचरित मानस के अनुसार राम कौन हैं? इसको शायद अभी हम नहीं जानते। क्यों? पूरी दुनियां की रचना किसने की? भगवान श्री राम कहतेंं हैं।
*सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए*।
सम्पूर्ण मानव सृष्टि सब परमात्मा से उत्पन्न हुई है। जो परमात्मा कण कण में व्याप्त है, जिस परमात्मा राम को पूरी दुनियां में लोग मानते थे, कभी।
आज हमारे देश की पहचान क्या हैं? भगवान राम और कृष्ण। लेकिन कभी पूरे विश्व की पहचान भगवान राम से थी। आज से दो ढाई हजार वर्ष पहले इस दुनियां में कोई धर्म नहीं था। और कोई महापुरुष नही थे। केवल परमात्मा जो अवतरित होता था, वो भगवान राम के रूप में और भगवान कृष्ण के रूप में। पूरी दुनियां में केवल यहीं एक परमात्मा की पूजा थी। लेकिन धीरे,धीरे जो राम हैं, उनके वास्तविक स्वरूप को हम नहीं, समझें, और हमने उस परमात्मा राम को संकुचित कर दिया। एक हिंदू कबीला है, केवल उसी का भगवान बन कर रह गया। जो भगवान यह कहता हैं, कि *सब मम प्रिय सब मम उपजाए।*
पूरी सृष्ष्टि मेरी उत्पत्ति हैं। तो क्या पूरी सृष्टि के लोग भगवान राम को मानते हैं? आज के स्थिती में ऐसा हैं? नहीं है। लेकिन भगवान राम का क्या कहना हैं?
*अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया॥*
सब भगवान ने पैदा किया,और सबके अंदर भगवान का निवास हैं। इस बात को हमलोग नहीं समझते, हमने भगवान के निवास को एक निश्चित स्थान पर कर दिया। और उसका परिणाम ये हुआ कि जो कण, कण में व्याप्त हैं, उसको हमने एक स्थान पर कर दिया,उसको हम किसी विषेश वर्ग का, भगवान बना दिया, तो दूसरे लोगो ने मानने से इन्कार कर दिया। जिस भगवान का सबके अंदर निवास हैं, जिस भगवान राम के विषय में हम चर्चा करते हैं। हिंदुओं में चार प्रकार की वर्ण व्यवस्था हैं। उनमें से एक वर्ग विषेश को, जिसको हम दलित वर्ग कहते हैं, शूद्र कहते हैं। उनको मन्दिर में जाने का अधिकार ही नहीं था। डॉक्टर बी आर अंबेडकर सात दिन तक नाशिक में राम मन्दिर पर बैठे रहे, नहीं जानें दिया। तो क्या ये वही राम है,? जो कण कण में व्याप्त है, जो प्रत्येक व्यक्ती के ह्वदय में रहता हैं, जो सबको एक समान देखता हैं। ये बात समझना बहुत आवश्यक है, कि जिसको पूरा विश्व मानता था, उस राम को भारत में केवल हिंदू मानता है, और हिन्दुओं में भी अलग अलग प्रकार के संप्रदाय हैं,जिसमें कबीरदास जी को मानने वाले कबीरपंथी कहते हैं, कि चार राम हैं।
*एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब सबसे हैं न्यारा*।
और साहित्यकारों ने दो भागों में विभक्त किया। एक निर्गुण ब्रह्म हैं, और एक सगुण ब्रह्म है। दो रूप बना दिए, दोनों राम के ही रूप हैं, लेकिन सगुण ब्रह्म को मानने वाले निर्गुण ब्रह्म को नहीं मानते। और निर्गुण ब्रह्म को मानने वाले सगुण ब्रह्म को नहीं मानते।
दो भागों में हिंदू समाज इसमें भी बटा हुआ हैं। निर्गुण विचारधारा, सगुण विचारधारा दो में बट गया। तो आखिर में राम क्या है? राम तो एक ही हैं। भगवान राम कहते हैं, सारी सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई, और वे कण कण में व्याप्त हैं। लेकिन यहां पर कई रामो का वर्णन हमारे देश में हैं। सब अलग अलग ढंग से मानते भी हैं। इसलिए ये समझना आवश्यक हो जाता है कि रामचरित मानस में जिस भगवान राम के बारे में बताया हैं, आखिर उन भगवान का क्या स्वरुप हैं। तो इस तरह से इस राम को न जानने के कारण, हमारा समाज अनेक, अनेक संप्रदाय में विभक्त हुआ। जबकि पूरी दुनियां में कभी एक ईश्वर की उपासना करने वाले लोग थे। अलग अलग पूजा पद्धतियों में अनेक सम्प्रदायों में पूरा विश्व बट गया। राम क्या हैं, निर्गुण क्या हैं, सगुण क्या हैं, और फिर राम का जन्म क्या हैं? इन्ही दो तीन बातों को हम समझेंगे।
पूरा रामचरित मानस किसकी रचना है? भगवान शंकर के हृदय की।
*रचि महेश निज मानस राखा, पाई सुसमय शिवासन भाखा।* ।
बाल्मिकी जी ने, तुलसीदास जी ने केवल उसका अनुवाद किया हैं।
पहला प्रश्न रामचरित मानस का क्या है? पार्वती पूछती हैं, कि राम कौन हैं?
भरद्वाज ऋषि याज्ञवल्क जी से, पूछते हैं कि,
*एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा,नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥**
*प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि। सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि*
एक राम अवधेश के लड़के हैं, जिनका चरित्र संसार जानता हैं।
क्या चरित्र हैं? नारी के विषय में दुखी हुए,रोष में आए,रावण का बध किया।
और फिर अपने गुरू याज्ञवल्क से प्रश्न किया कि,
*प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि,
राम वहीं है कि दूसरा कोई हैं? जिसका शंकर जी निरंतर जप करतें हैं, घ्यान करते हैं, वो कोई और हैं, और जो दशरथ का पुत्र हैं , जिसने रावण को मारा या कोई और हैं? आप सत्य के धाम है, सत्य के विषय में जानते हैं, अर्थात् राम के विषय में जानते हैं, मुझे इस प्रश्र का उत्तर चाहिए।
श्रृष्टी के आरम्भ में, राम कौन हैं, ये प्रश्न हैं, रामचरित मानस की शुरूआत होती हैं, तो भरद्वाज ऋषि अपने गुरू से पूछतें हैं कि राम कौन?
और हमने जब ये प्रश्न बोर्ड पर लिखवाया कि राम कौन हैं?राम जन्म क्या हैं? तो कुछ लोगो को इस बात से आपत्ति हुई कि श्री राम क्यों नहीं लिखा गया? श्री, लिखना चाहिए।लेकिन, यहां भरद्वाज ऋषि पूछ रहें हैं कि राम कवन मै पूछहु तोही,
श्री राम कौन, भगवान राम कौन, नहीं, राम कौन? मैं आपसे पूछना चाहता हु।
और उन्होंने प्रश्न किया कि, एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा। फिर पुछतें हैं कि, प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
वहीं राम हैं कि, दूसरा कोई हैं, जिसको त्रिपुरारी शंकर जी जपते हैं, जो शंकर जी के इष्ट हैं। मुझे इस विषय में बताइए, जब प्रश्न किया तो उनके गुरु थे याज्ञवल्क महाराज, उन्होंने माता सती का, और भगवान शंकर का संवाद सुनाने की कोशिस की। और कहा कि,
*ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी* ।
जैसे आपने प्रश्न किया, वैसे ही सती ने भी प्रश्न किया था।
सती ने कैसे प्रश्न किया? भगवान शंकर माता सती के साथ जा रहे थे,
और उधर सीता जी का अपहरण हो गया, भगवान राम सीता जी के विरह में पूछ रहे थे,
*हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी तुम देखी सीता मृगनैनी”*
ये जो दशा थी, भगवान राम की, शंकर जी तो जान गए, कि भगवान ही हैं कोई और नहीं हैं। लेकिन सती जी को भ्रम हो गया। कि जब ये राम हैं, तो नारी के विरह में क्यो दुखी हैं।
*रामु सो अवध नृपति सुत*सोई। की अज अगुन अलखगति कोई*
राम वही अवधपति राजा दसरथ का पुत्र या अजन्मा अलख कोई और?
और फिर प्रश्न किया कि,
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।,
जब ये राजा का लड़का है तो ब्रह्म कैसे, और जब ब्रह्म हैं, तो चलता फिरता आदमी कैसे?
*जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि। देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥*
ये पार्वती जी का प्रश्न हैं।
सती जी का प्रश्न था,
*ब्रह्म जो ब्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद। सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद॥*
जो ब्रह्म कण कण में व्याप्त है, अकल है,इच्छाओं से परे है, भेद से रहित अखंड हैं। वो शरीर धारण करके मनुष्य कैसे हो सकता है, जिसको वेद भी नही जानते, ये सती जी ने प्रश्न किया। तो भगवान शंकर ने कहा, कि मैं तो जानता हूं कि, यही ब्रह्म हैं, जो सामने दिखाई दे रहा हैं, तुम्हारे अंदर संशय है, तुम जाकर देख सकती हो, कि है की नही? सती जी गई, परीक्षा लेने के लिए, सीता जी का रुप धारण करके। तो भगवान तो समझ गए कि सती ने सीता का रुप धारण किया हैं,
उन्होंने ये नही पूछा की सती जी कहां से आई हैं? उन्होंने सती को उनके पिता के साथ उनका नाम लिया।
*पिता समेत लीन्ह निज नामू॥कहेउ
बहोरि कहाँ बृषकेतू।बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू।*
सती जी एकदम सकपका गई, समझ गई कि ये भगवान हैं। और उसके बाद भगवान ने अपनी महिमा दिखाई, जहां भी देखती थी,राम लक्ष्मण सीता चले आ रहे है, आगे पीछे, बाहर, आकाश में,जहां भी आंख खोलकर देखे, सर्वत्र राम दिखायी देने लगे। विश्वास हो गया कि ये जो दिखाई दे रहा हैं वो, और जो नही दिखाई देता हैं वो, एक ही हैं, अलग अलग नही हैं। संशय हुआ तो सती ने अपना शरीर छोड़ा, उसके बाद पार्वती के रुप में आई, तो तपस्या की और भगवान को प्राप्त किया। भगवान के प्राप्ती करने के बाद जब शंकर जी और पार्वती जी बैठे, तो फिर वही प्रश्न,
राम कौन ?
*जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि। देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥*
चरित्र को देखकर कि चल रहे हैं,फिर रहे हैं, बातें कर रहे हैं, महिमा सुनकर मेरी बुद्धि में भ्रम हैं।
*जो अनीह ब्यापक बिभु कोऊ। कहहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ। अग्य जानि रिस उर जनि धरहू। जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू॥*
वो व्यापक हैं, कण कण में हैं, अव्यक्त हैं, वो भी मुझे समझाओ, और यदि राजा का लडका है, तो भी मुझे समझाओ। दो राम हैं, क्या? वही कबीर दास जी कह रहे हैं , जिनको निर्गुण उपासक लोग मानते हैं। कबीरपंथी कहते हैं, कि चार राम हैं।
*एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब सबसे हैं न्यारा*।
यही प्रश्न पार्वती का हैं। फिर भगवान शंकर ने देखा,
भगवान शंकर कौन हैं? रचि महेश निज मानस राखा। जिन्होंने रामचरित मानस की रचना की। रामचरित मानस की रचना वही कर सकता हैं, जिसके हृदय में राम का निवास हैं। जो राम का ही स्वरूप हैं , जो राम को जब चाहें देख सकता है। जो चौबीस घंटे उसी में रमण करता हैं। भगवान शंकर ऐसे ही थे। जब माता पार्वती ने पूछा तो उन्होंने ध्यान किया भगवान का,
*मगन ध्यान रस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह। रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह॥*
पहले ध्यान किया दो मिनट के लिए, फिर भगवान राम के स्वरूप को ह्रदय में देखा, जो अव्यक्त हैं, निराकार हैं, फिर पार्वती जी के तरफ देखा,
*श्री रघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा*
श्री राम जी का का जन्म अयोध्या में हुआ, शंकर जी देख रहे हैं, कि पार्वती को भ्रम हुआ,जिसका वो ध्यान करते थे, वो उन्हीं के अंदर था, उसका ध्यान किए,जिस रुप का घ्यान करते थे वो रुप अंदर आ गया, फिर पार्वती जी ने जो प्रश्न किया, भगवान शंकर को पता चल गया कि पार्वती ने प्रश्न कैसे किया। कहते है कि,
*राम कृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं। सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं॥*
ये तो तुम्हारा प्रश्न ही नही हैं। जो तुमने पूछा हैं, तुमने तो राम को जान लिया है।
तो, पार्वती जी ने प्रश्र किसके लिए किया?
*तुम रघुवीर चरण अनुरागी । कीन्हेउ प्रश्न जगत हितलागी ।*
ये तो संसार का प्रश्न हैं, ये तुमने संसार के हित के लिए प्रश्न किया हैं। वास्तव में ये संसार का प्रश्न हैं। आपका हमारा सबका प्रश्र हैं। राम कौन?
रामायण लिखा गया, रामकथा भी आप सुनते हैं, व्यास लोग बताते भी हैं। सैकड़ों बार कथा सुने होंगे, ऐसे भी लोग होंगे। फिर भी कोई ये नही बता सकता कि राम कौन हैं? किसकी पूजा करना है, किस तरह से करना हैं? प्रश्र ज्यों का त्यों। और राम को यदि हम जानते, तो राम की नाम पर अनेक प्रकार के देवी देवताओ की पूजा क्यों? शनिचर की पूजा क्यों, ग्रह उपग्रह की पूजा क्यों? जब हम राम को जानते हैं, राम कथा को जानते हैं, तो हमारा अनुराग राम में क्यों नहीं हैं? क्यों हम राम को छोड़ देते हैं? इसका मतलब राम को नही जानते हैं। जो राम को पूजते हैं, वही राम को छोड़कर दस बीस हज़ार लेकर ईसाई बन जाते है।
जो कृष्ण को मानते हैं, वही पैसा लेकर ईसाई बन जाते हैं। पूरे विश्व में राम को मानने वाले लोग, केवल भारत में ही कैसे रह गए? इसी राम को न जानने के कारण। रामायण थी, और राम कथा भी, होती थी, लेकिन लोग नही समझे। अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म में चले गए। इसलिए राम के विषय में जानना जरूरी हैं। कि राम क्या हैं? तो भगवान शंकर ने राम की व्याख्या की। पहले अपने ह्रदय में ध्यान किया, फिर जिसके बारे में बताना था, उसका ध्यान किया, भगवान का आदेश लिया, फिर उनके स्वरूप का वर्णन किया। भगवान शंकर कहते हैं।
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। ये संपूर्ण संसार क्या हैं? ये संपूर्ण संसार जिससे प्रकासित होता हैं, जिस शक्ति से सही और गलत का ज्ञान होता हैं। उस ज्ञान को कहते हैं प्रकाश। सारा संसार जिसके उपस्थिति से अपना सारा कार्य करता हैं।
*बिषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता। सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई*
इन्द्रियों के विषय और इंद्रियां और उनमें रहने वाले देवता, और प्रत्येक शरीर धारी जीवात्मा, जो एक दुसरे से सचेत होते हैं, वो राम की शक्ती से ही सचेत होते हैं। व्यक्ती जीवित है, तभी तक संसार का भी कार्य कर सकता हैं, जीवात्मा शरीर छोड़ गया, तो क्या कोई कार्य करता हैं? नही करता हैं, तो वो जो शक्ती हैं जिससे हम संसार में कार्य करते हैं, वह शक्ती किसकी हैं, वह राम की शक्ती हैं। प्रत्येक जीव के अंदर राम की शक्ती हैं। तो इस दृष्टी से प्रत्येक जीव मात्र का।
सबकर परम प्रकाशक, केवल हिंदुओं का ही नहीं मुसलमानों का भी, ईसाईयों का भी सबके अंदर जो शक्ती है, वो राम की ही शक्ती हैं। ये भगवान शंकर व्याख्या करते हैं। फिर जो माता पार्वती ने पूछा था, कि निर्गुण ब्रह्म सगुण कैसे हुआ? इसके बारे में भी बताएं। तो भगवान शंकर कहते हैं,
*अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*
जो अगुण है, गुणों से रहित हैं, अरूप है, जिसका कोई रूप नही हैं,अलख हैं, जो आंखों से देखने में नही आता है।
अजन्मा है, जिसका जन्म होता ही नही है, वही भक्ती और प्रेम के बस में होकर के जन्म लेता हैं।
*भगति प्रेम बस सगुण सो होई।*
कैसे वो सगुण होता हैं, उसकी विधि हैं। क्या हैं? भक्ती और प्रेम के बस में होकर।
तुलसीदास जी कहते हैं कि,
*निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई। सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥*
निर्गुण रूप अत्यंत सुलभ हैं,और सगुण कोई जानता ही नहीं है।
और लोगों ने क्या किया कि, तुलसीदास जी को कहते हैं कि तुलसीदास सगुण उपासक थे। और सगुण उपासना किसको मानते हैं? मूर्ती पूजा को, तस्वीर की पूजा को मानते हैं। और तुलसीदास खुद पूजा करते थे, ठाकुर जी की। और कहते है कि,
*निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई। सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥*
इसलिए सगुण और निर्गुण में भ्रान्ति हैं। लोग कबीरदास जी को कहते हैं निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे, और तुलसीदास जी सगुण ब्रह्म के। निर्गुण नाम की कोई उपासना होती ही नही। निर्गुण निराकार उस परमात्मा का स्वरूप हैं। उपासना जब भी शूरू होती हैं, सगुण से ही शूरू होती हैं। भक्ति और प्रेम के बस में वो निर्गुण ब्रह्म सगुण हो जाता है।
*जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें॥*
जैसे जल और बर्फ। बर्फ पिघलकर जल हो जाती हैं, और जल जमकर बर्फ हो जाती हैं। दोनों में कोई अन्तर नहीं हैं। वैसे ही निर्गुण निराकार ब्रह्म से जब प्रेम होता हैं, किसी मनुष्य के हृदय में, तो उसके अंदर वो सगुण हो जाता हैं। तो उसी के अंदर वो सगुण रूप हो जाता है। तो जिसके गुण प्रकट नहीं हैं। तो गुण होते हैं,प्रकृति के,
गुण क्या है? सत, रज, तम तीन गुण होते है। तो जो परमात्मा निर्गुण निराकार है, ओर तीनों गुणों से हमारा शरीर बना हैं। हमारे ही अंदर हैं, लेकिन हम उसको नहीं जानते। तो जिस परमात्मा के गुण हमारे अंदर प्रकट हो जाते है, तो उसको सगुण कहते हैं। परमात्मा के क्या गुण हैं? क्या क्षमता हैं उसकी? परमात्मा त्रिकालज्ञ है, सर्वज्ञ हैं। सगुण होने का मतलब उसकी त्रिकालज्ञता हमारे अंदर प्रकट हो जाय। उसकी सर्वज्ञता हमारे अंदर प्रकट हो जाय। वो अविनाशी हैं, तो उसके अविनाशीपन का अनुभव हमे भी होने लगे। इसको कहते हैं सगुण। अर्थात् तीनों गुणों के साथ साथ भगवान हमे बताने लगें।
तो ये भगवान कैसे बताते हैं, भगवान की जागृति की इस प्रक्रिया को क्या कहते हैं? तो इसको तुलसीदास जी ने कई जगह बताया है, अनुभूति के रूप में। जब माता सती को भ्रम हुआ, तो माता सती को भगवान ने अपनी क्या महिमा बताई? महिमा बताई उनके ध्यान में, जब उन्होंने अपनी आंख बंद की तो उनके अंदर सारी श्रृष्टि दिखाई देने लगीं। ये क्या हैं? इसी को अनुभव कहते हैं। जो ब्रह्म हैं निर्गुण निराकार वहां तक पहुंचने का मार्ग क्या है?
*जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता।अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता**
ब्रह्म अखंड और अनंत है लेकिन उसको पकड़ने का उपाय क्या है?
उस निर्गुण को साकार रूप करने का उपाय क्या हैं। वह साकार होता हैं, तो किस रुप में? कहते हैं कि अनुभव गम्य। अनुभव के रूप में वो जन्म लेता है, साकार होता हैं। अनुभव किसे कहते हैं? अन माने अतीत भव माने संसार, वह जागृती जो हमे संसार से मुक्त कर दे। संसार क्या है, और उससे मुक्ती क्या है, इसका बोध कराती हैं। वह जागृति विषेस अनुभव हैं, वो जागृति है क्या? जिस परमात्मा की हमे चाह है, जो कण कण में व्याप्त हैं, जो हमारे सबके हृदय में है,
*राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी॥*
सबके हृदय में निवास करता हैं। लेकिन कैसे प्रकट होता हैं?
*नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥*
वह निर्गुण ब्रह्म प्रेम के बस में होकर सगुण होते हैं, उनके गुण प्रकट होते हैं। इसलिए सगुण का मतलब होता हैं,अनुभव की जागृति। अनुभव क्या हैं? जिस सतह पर हम खड़े हैं, चाहें घर में हैं, या बन में हैं, हमारी प्रार्थना ऐसी हो,
किस राम के प्रती?
हृदय स्थित राम के प्रति, अपने हृदय में जो राम हैं।
*व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी,सत चेतन घन आनंद राशी।*
कहां रहता हैं?
*अस प्रभु हृदय अछत अविकारी,सकल जीव जग दीन दुखारी।।*
सबके हृदय में वो रहता हैं। उस हृदय स्थित ईश्वर के प्रति, हमारी श्रद्धा ऐसी हों, हमारा प्रेम ऐसा हो, हमारा नाम का जप इतना उन्नत हो कि, वह परमात्मा जागृत होकर हमे बताने लगें, संसार क्या हैं, और इससे मुक्ती क्या हैं। इस जागृति का नाम अनुभव हैं।
जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता।अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता।
और इस अनुभव के आश्रित रहकर जो भजन करते हैं, भगवान की प्रेरणा भगवान का आदेश समझकर के जो भगवान का भजन करते हैं, नाम का जप करते हैं, वे मनुष्य ही नही संत हैं।
और वे ही सगुण ब्रह्म के उपासक हैं। इसको स्पष्ट किया, कुंभज ऋषि ने, कि सगुण ब्रह्म की उपासना क्या हैं? निर्गुण ब्रह्म सगुण कैसे होता हैं? तो भगवान राम ने पुछा कि मैं कहा पर रहूं? तो अगत्स्य ऋषि ने कहा, कि सब जगह आप हैं।
*भगवान श्री राम का क्या स्वरुप हैं,और राम का जन्म क्या हैं?*
रामनवमी के उपलक्ष्य में हम बताएंगे। कुछ ऐसी बातें हैं, जिसको हमारें समाज ने नहीं जाना, और उसके न जानने के कारण, बहुत बड़ी हानि इस हिंदू समाज को हुई। बहुत सारी प्रश्न हैं, जैसे धर्म है, वर्ण व्यवस्था है, वैसे ही एक प्रश्न हैं, राम कौन हैं? वैसे हम सभी भगवान श्री राम के विषय में जानतें है। राम कथाएं भी होती हैं, और देश का बच्चा बच्चा भगवान राम के जीवन वृक्ष से परिचित है। लेकिन फिर भी रामचरित मानस के अनुसार राम कौन हैं? इसको शायद अभी हम नहीं जानते। क्यों? पूरी दुनियां की रचना किसने की? भगवान श्री राम कहतेंं हैं।
*सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए*।
सम्पूर्ण मानव सृष्टि सब परमात्मा से उत्पन्न हुई है। जो परमात्मा कण कण में व्याप्त है, जिस परमात्मा राम को पूरी दुनियां में लोग मानते थे, कभी।
जैसे आज हमारे देश की पहचान क्या हैं? भगवान राम और कृष्ण। लेकिन कभी पूरे विश्व की पहचान भगवान राम से थी। आज से दो ढाई हजार वर्ष पहले इस दुनियां में कोई धर्म नहीं था। और भी कोई महापुरुष नही थे। केवल परमात्मा जो अवतरित होता था, वो भगवान राम के रूप में और भगवान कृष्ण के रूप में। पूरी दुनियां में केवल यहीं एक परमात्मा की पूजा थी। लेकिन धीरे,धीरे जो राम हैं, उनके वास्तविक स्वरूप को हम नहीं, समझें, और हम उस परमात्मा राम को संकुचित कर दिया। एक हिंदू कबीला है, केवल उसी का भगवान बन कर रह गया। जो भगवान यह कहता हैं, कि *सब मम प्रिय सब मम उपजाए।*
पूरी सृष्ष्टि मेरी उत्पत्ति हैं। तो क्या पूरी सृष्टि के लोग भगवान को मानते हैं? आज के स्थिती में ऐसा हैं? नहीं है। लेकिन भगवान राम का क्या कहना हैं?
*अखिल बिस्व यह मोर उपाया। सब पर मोहि बराबरि दाया॥*
सब भगवान ने पैदा किया,और सबके अंदर भगवान का निवास हैं। इस बात को हमलोग नहीं समझते, हमने भगवान के निवास को एक निश्चित स्थान पर कर दिया। और उसका परिणाम ये हुआ कि जो कण कण में व्याप्त हैं, उसको हमने एक स्थान पर कर दिया,उसको हम किसी विषेश वर्ग का, भगवान बना दिया, तो दूसरे लोगो ने मानने से इन्कार कर दिया। जिस भगवान का सबके अंदर निवास हैं, जिस भगवान राम के विषय में हम चर्चा करते हैं। हिंदुओं में चार प्रकार की वर्ण व्यवस्था हैं। उनमें से एक वर्ग विषेश को, जिसको हम दलित वर्ग कहते हैं, शूद्र कहते हैं। उनको मन्दिर में जाने का अधिकार ही नहीं था। डॉक्टर बी आर अंबेडकर सात दिन तक नाशिक में राम मन्दिर पर बैठे रहे, नहीं जानें दिया। तो क्या ये वही राम है जो कण कण में व्याप्त है, जो प्रत्येक व्यक्ती के ह्वदय में रहता हैं, जो सबको एक समान देखता हैं। ये बात समझना बहुत आवश्यक है, कि जिसको पूरा विश्व मानता था, उस राम को भारत में केवल हिंदू मानता है, और हिन्दुओं में भी अलग अलग प्रकार के संप्रदाय हैं,जिसमें कबीरदास जी को मानने वाले कबीरपंथी कहते हैं, कि चार राम हैं।
*एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब सबसे हैं न्यारा*।
और साहित्यकारों ने दो भागों में विभक्त किया। एक निर्गुण ब्रह्म हैं, और एक सगुण ब्रह्म है। दो रूप बना दिए, दोनों राम के ही रूप हैं, लेकिन सगुण ब्रह्म को मानने वाले निर्गुण ब्रह्म को नहीं मानते। और निर्गुण ब्रह्म को मानने वाले सगुण ब्रह्म को नहीं मानते।
दो भागों में हिंदू समाज इसमें भी बटा हुआ हैं। निर्गुण विचारधारा, सगुण विचारधारा दो में बट गया। तो आखिर में राम क्या है? राम तो एक ही हैं। भगवान राम कहते हैं, सारी सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई, और कण कण में व्याप्त हैं। लेकिन यहां पर कई रामो का वर्णन हमारे देश में हैं। सब अलग अलग ढंग से मानते भी हैं। इसलिए ये समझना आवश्यक हो जाता है कि रामचरित मानस में जिस भगवान राम के बारे में बताया हैं, आखिर उन भगवान का क्या स्वरुप हैं। तो इस तरह से इस राम को न जानने के कारण, हमारा समाज अनेक अनेक संप्रदाय में विभक्त हुआ। जबकि पूरी दुनियां में कभी एक ईश्वर की उपासना करने वाले लोग थे। अलग अलग पूजा पद्धतियों में अनेक सम्प्रदायों में पूरा विश्व बट गया। राम क्या हैं, निर्गुण क्या हैं, सगुण क्या हैं, और फिर राम का जन्म क्या हैं? इन्ही दो तीन बातों को हम समझेंगे।
पूरा रामचरित मानस किसकी रचना है? भगवान शंकर के हृदय की।
*रचि महेश निज मानस राखा, पाई सुसमय शिवासन भाखा।* ।
बाल्मिकी जी ने तुलसीदास जी ने केवल उसका अनुवाद किया हैं।
पहला प्रश्न रामचरित मानस का क्या है? पार्वती पूछती हैं, कि राम कौन हैं?
भरद्वाज ऋषि यज्ञवल्क से, पूछते हैं कि,
*एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा,नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥**
*प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि। सत्यधाम सर्बग्य तुम्ह कहहु बिबेकु बिचारि*
एक राम अवधेश के लड़के हैं, जिनका चरित्र संसार जानता हैं।
क्या चरित्र हैं? नारी के विषय में दुखी हुए,रोष में आए,रावण का बध किया।
और फिर अपने गुरू यज्ञवल्क से प्रश्न किया कि,
*प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि,
राम वहीं है कि दूसरा कोई हैं? जिसका शंकर जी निरंतर जप करतें हैं, घ्यान करते हैं, वो कोई और हैं, और जो दशरथ का पुत्र हैं , जिसने रावण को मारा वो कोई और हैं? आप सत्य के धाम है, सत्य के विषय में जानते हैं, अर्थात् राम के विषय में जानते हैं, मुझे इस प्रश्र का उत्तर चाहिए।
श्रीष्टि के आरम्भ में, राम कौन हैं, ये प्रश्न हैं, रामचरित मानस की शुरूआत होती हैं, तो भरद्वाज ऋषि अपने गुरू से पूछतें हैं कि राम कौन।
और हमने जब ये प्रश्न बोर्ड पर लिखवाया कि राम कौन हैं?राम जन्म क्या हैं? तो कुछ लोगो को इस बात से आपत्ति हुई कि श्री राम क्यों नहीं लिखा गया? श्री लिखना चाहिए, लेकिन, यहां भरद्वाज ऋषि पूछ रहें हैं कि राम कवन मै पूछहु तोही,
श्री राम कौन, भगवान राम कौन नहीं, राम कौन मैं आपसे पूछना चाहता हु।
और उन्होंने प्रश्न किया कि,
*एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा। फिर पुछतें हैं कि, प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ जाहि जपत त्रिपुरारि।
वहीं राम हैं कि दूसरा कोई हैं, जिसको त्रपुरारी, शंकर जी जपते हैं, जो शंकर जी के इष्ट हैं। मुझे इस विषय में बताइए, जब प्रश्न किया तो उनके गुरु थे यज्ञवल्क महाराज, उन्होंने माता सती का, और भगवान शंकर का संवाद सुनाने की कोशिस की। और कहा कि,
ऐसेइ संसय कीन्ह भवानी। महादेव तब कहा बखानी।
जैसे आपने प्रश्न किया, वैसे ही सती ने भी प्रश्न किया था।
सती ने कैसे प्रश्न किया? भगवान शंकर माता सती के साथ जा रहे थे,
और उधर सीता जी का अपहरण हो गया, भगवान राम सीता जी के विरह में पूछ रहे थे,
*हे खग मृग हे मधुकर श्रेणी तुम देखी सीता मृगनैनी”*
ये जो दशा थी, भगवान राम की, शंकर जी ने तो जान ली, कि भगवान ही हैं कोई और नहीं हैं। लेकिन सती जी को भ्रम हो गया। कि जब ये राम हैं, तो नारी के विरह में क्यो दुखी हैं।
*रामु सो अवध नृपति सुत*सोई। की अज अगुन अलखगति कोई*
राम वही अवधपति राजा दसरथ का पुत्र या अजन्मा अलख कोई और?
और फिर प्रश्न किया कि,
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।,
जब ये राजा का लड़का है तो ब्रह्म कैसे, और जब ब्रह्म हैं, तो चलता फिरता आदमी कैसे?
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि। देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥
ये पार्वती जी का प्रश्न हैं।
सती जी का प्रश्न था,
ब्रह्म जो ब्यापक बिरज अज अकल अनीह अभेद। सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत बेद॥
जो ब्रह्म कण कण में व्याप्त है, अकल है,इच्छाओं से परे है, भेद से रहित अखंड हैं। वो शरीर धारण करके मनुष्य कैसे हो सकता हैं, जिसको वेद भी नही जानते, ये सती जी ने प्रश्न किया। तो भगवान शंकर ने कहा, कि मैं तो जानता हूं कि, यही ब्रह्म हैं, जो सामने दिखाई दे रहा हैं, तुम्हारे अंदर संशय है, तुम जाकर देख सकती हो, कि है की नही? सती जी गई, परीक्षा लेने के लिए, सीता जी का रुप धारण करके। तो भगवान तो समझ गए कि सती ने सीता का रुप धारण किया हैं,
उन्होंने ये नही पूछा की सती जी कहां से आई हैं? उन्होंने सती को उनके पिता के साथ उनका नाम लिया।
*पिता समेत लीन्ह निज नामू॥कहेउ
बहोरि कहाँ बृषकेतू।बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू।*
सती जी एकदम सकपका गई, समझ गई कि ये भगवान हैं। और उसके बाद भगवान ने अपनी महिमा दिखाई, जहां भी देखती थी,राम लक्ष्मण सीता चले आ रहे है, आगे पीछे, बाहर, आकाश में,जहां भी आंख खोलकर देखे, सर्वत्र राम दिखायी देने लगे। विश्वास हो गया कि ये को दिखाई दे रहा हैं, वो, और जो नही दिखाई देता हैं वो एक ही हैं, अलग अलग नही हैं। संशय हुआ तो सती ने अपना शरीर छोड़ा, उसके बाद पार्वती के रुप में आई, तो तपस्या की और भगवान की प्राप्त किया। भगवान के प्राप्ती करने के बाद जब शंकर जी और पार्वती जी बैठे, तो फिर वही प्रश्न,
राम कौन ?
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि। देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥
चरित्र को देखकर कि चल रहे है फिर रहे हैं, बातें कर रहे हैं, महिमा सुनकर के मेरी बुद्धि में भ्रम हैं।
*जो अनीह ब्यापक बिभु कोऊ। कहहु बुझाइ नाथ मोहि सोऊ। अग्य जानि रिस उर जनि धरहू। जेहि बिधि मोह मिटै सोइ करहू॥*
कोई व्यापक हैं, कण कण में हैं, अव्यक्त हैं, वो भी मुझे समझाओ, और यदि राजा का लडका है, तो भी मुझे समझाओ। दो राम हैं, क्या? वही कबीर दास जी कह रहे हैं , जिनको निर्गुण उपासक लोग मानते हैं। कबीरपंथी कहते हैं, कि चार राम हैं।
*एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे लेटा। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब सबसे हैं न्यारा*।
यही प्रश्न पार्वती का हैं। फिर भगवान शंकर ने देखा,
भगवान शंकर कौन हैं? रचि महेश निज मानस राखा। जिन्होंने रामचरित मानस की रचना की। रामचरित मानस की रचना वही कर सकता हैं, जिसके हृदय में राम का निवास हैं। जो राम का ही स्वरूप हैं , जो राम को जब चाहें देख सकता है। जो चौबीस घंटे उसी में रमण करता हैं। भगवान शंकर ऐसे ही थे। जब माता पार्वती ने पूछा तो उन्होंने ध्यान किया भगवान का,
*मगन ध्यान रस दंड जुग पुनि मन बाहेर कीन्ह। रघुपति चरित महेस तब हरषित बरनै लीन्ह॥*
पहले ध्यान किया दो मिनट के लिए, फिर भगवान राम के स्वरूप को ह्रदय में देखा, जो अव्यक्त हैं निराकार हैं, फिर पार्वती जी के तरफ देखा, और फिर जब बोलने लगे तब,
*श्री रघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा*
श्री राम जी का का जन्म अयोध्या में हुआ, शंकर जी देख रहे हैं, कि पार्वती को भ्रम हुआ,जिसका वो ध्यान करते थे, वो उन्हीं के अंदर था, उसका ध्यान किए,जिस रुप का घ्यान करते थे वो रुप अंदर आ गया, फिर पार्वती जी ने जो प्रश्न किया, भगवान शंकर को पता चल गया कि पार्वती ने प्रश्न कैसे किया। कहते है कि,
*राम कृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं। सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं॥*
ये तो तुम्हारा प्रश्न ही नही हैं। जो तुमने पूछा हैं तुमने तो राम को जान लिया है तो, पार्वती जी ने प्रश्र किसके लिए किया?
*तुम रघुवीर चरण अनुरागी । कीन्हेउ प्रश्न जगत हितलागी ।*
ये तो संसार का प्रश्न हैं, ये तुमने संसार के हित के लिए प्रश्न किया हैं। वास्तव में ये संसार का प्रश्न हैं। आपका हमारा सबका प्रश्र हैं। राम कौन?
रामायण लिखा गया, रामकथा भी आप सुनते हैं, व्यास लोग बताते भी हैं। सैकड़ों बार कथा सुने होंगे ऐसे भी लोग होंगे। फिर भी कोई ये नही बता सकता कि राम कौन हैं? किसकी पूजा करना है, किस तरह से करना हैं? प्रश्र ज्यों का त्यों। और राम को यदि हम जानते, तो राम की नम पर अनेक प्रकार के देवी देवताओ की पूजा क्यों? शनिचर की पूजा क्यों, ग्रह उपग्रह की पूजा क्यों? जब हम राम को जानते हैं, राम कथा को जानते हैं, तो हमारा अनुराग राम में क्यों नहीं हैं। क्यों हम राम को छोड़ देते हैं? तो राम के नही जानते हैं। जो राम को पूजते हैं, वही राम को छोड़कर दस बीस हज़ार लेकर ईसाई बन जाते है।
जो कृष्ण को मानते हैं, वही पैसा लेकर ईसाई बन जाते हैं। पूरे विश्व में राम को मानने वाले लोग, केवल भारत में ही कैसे रह गए? इसी राम को न जानने के कारण। रामायण थी, और राम कथा भी, होती थी, लेकिन लोग नही समझे। अपने धर्म को छोड़कर दूसरे धर्म में चले गए। इसलिए राम के विषय में जानना जरूरी हैं। कि राम क्या हैं? तो भगवान शंकर ने राम की व्याख्या की। पहले अपने ह्रदय में ध्यान किया, फिर जिसके बारे में बताना था, उसका ध्यान उसका ध्यान किया, भगवान का आदेश लिया, फिर उनके स्वरूप का वर्णन किया। भगवान शंकर कहते हैं,
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू। ये संपूर्ण संसार क्या हैं? ये संपूर्ण संसार जिससे प्रकासित होता हैं, जिस शक्ति से सही और गलत का ज्ञान होता हैं। उस ज्ञान को कहते हैं प्रकाश। सारा संसार जिसके उपस्थिति से अपना सारा कार्य करता हैं।
*बिषय करन सुर जीव समेता। सकल एक तें एक सचेता। सब कर परम प्रकासक जोई। राम अनादि अवधपति सोई*
इन्द्रियों के विषय और इंद्रियां और उनमें रहने वाले देवता, और प्रत्येक शरीर धारी जीवात्मा, जो एक दुसरे से सचेत होते हैं, वो राम की शक्ती से ही सचेत होते हैं। व्यक्ती जीवित है, तभी तक संसार का भी कार्य कर सकता हैं, जीवात्मा शरीर छोड़ गया, तो क्या कोई कार्य करता हैं? नही करता हैं, तो वो जो शक्ती हैं जिससे हम संसार में कार्य करते हैं, वह शक्ती किसकी हैं, वह राम की शक्ती हैं। प्रत्येक जीव के अंदर राम की शक्ती हैं। तो इस दृष्टी से प्रत्येक जीव मात्र का, सबकर परम प्रकाशक, केवल हिंदुओं का ही नहीं मुसलमानों का भी, ईसाईयों का भी सबके अंदर जो शक्ती है, वो राम की ही शक्ती हैं। ये भगवान शंकर व्याख्या करते हैं। फिर जो माता पार्वती ने पुछा था, कि निर्गुण ब्रह्म सगुण कैसे हुआ? इसके बारे में भी बताएं। तो भगवान शंकर कहते हैं,
*अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥*
जो अगुण है, गुणों से रहित हैं, अरूप है, किसका कोई रूप नही हैं,अलख हैं, जो आंखों से देखने में नही आता है।
अजन्मा है जिसका जन्म होता ही नही है, वही भक्ती और प्रेम के बस में होकर के जन्म लेता हैं।
*भगति प्रेम बस सगुण सो होई।*
कैसे वो सगुण होता हैं, उसकी विधि हैं क्या हैं? भक्ती और प्रेम के बस में होकर। तुलसीदास जी कहते हैं कि,
*निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई। सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥*
निर्गुण रूप अत्यंत सुलभ हैं,और सगुण कोई जानता ही नहीं है।
और लोगों ने क्या किया कि, तुलसीदास जी को लोग कहते हैं कि तुलसीदास सगुण उपासक थे। और सगुण उपासना किसको मानते हैं? मूर्ती पूजा को, तस्वीर की पूजा को मानते हैं। और तुलसीदास खुद पूजा करते थे, ठाकुर जी की। और कहते है कि,
*निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई। सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥*
इसलिए सगुण और निर्गुण में भ्रान्ति हैं। लोग कबीरदास जी को कहते हैं निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे, और तुलसीदास जी सगुण ब्रह्म के। निर्गुण नाम की कोई उपासना होती ही नही। निर्गुण निराकार उस परमात्मा का स्वरूप हैं। उपासना जब भी शुरू होती हैं, सगुण से ही शुरु होती हैं। भक्ति और प्रेम के बस में वो निर्गुण ब्रह्म सगुण हो जाता है।
*जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें। जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें॥*
जैसे जल और बर्फ। बर्फ पिघलकर जल हो जाती हैं, और जल जमकर बर्फ हो जाती हैं। दोनों में कोई अन्तर नहीं हैं। वैसे ही निर्गुण निराकार ब्रह्म जब प्रेम होता हैं किसी मनुष्य के हृदय में, तो उसी के अंदर वो सगुण रूप हो जाता है।
प्रकृति के, गुण क्या है? सत रज तम तीन गुण होते है। तो जो परमात्मा निर्गुण निराकार है,और तीनों गुणों से हमारा शरीर बना हैं। हमारे ही अंदर हैं, लेकिन हम उसको नहीं जानते। तो जिस परमात्मा के गुण हमारे अंदर प्रकट हो जाते है, तो उसको सगुण कहते हैं। परमात्मा के क्या गुण हैं? क्या क्षमता हैं उसकी? परमात्मा त्रिकालज्ञ है, सर्वज्ञ हैं। सगुण होने का मतलब उसकी त्रिकालज्ञता हमारे अंदर प्रकट हो जाय। उसकी सर्वज्ञता हमारे अंदर प्रकट हो जाय। वो अविनाशी हैं, तो उसके अविनाशीपन का अनुभव हमे भी होने लगे। इसको कहते हैं सगुण। अर्थात् तीनों गुणों के साथ, साथ भगवान हमे बताने लगें।
तो ये भगवान कैसे बताते हैं, भगवान की जागृति की इस प्रक्रिया को क्या कहते हैं? इसको तुलसीदास जी ने कई जगह बताया है, अनुभूति के रूप में। जब माता सती को भ्रम हुआ, तो माता सती को भगवान ने अपनी क्या महिमा बताई? महिमा बताई उनके ध्यान में। जब उन्होंने अपनी आंख बंद की तो उनके अंदर सारी श्रृष्टि दिखाई देने लगीं। ये क्या हैं? इसी को अनुभव कहते हैं। जो ब्रह्म हैं निर्गुण निराकार वहां तक पहुंचने का मार्ग क्या है?
*जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता।अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता**
ब्रह्म अखंड और अनंत है लेकिन उसको पकड़ने का उपाय क्या है?
उस निर्गुण को साकार रूप करने का उपाय क्या हैं। वह साकार होता हैं, तो किस रुप में? कहते हैं कि अनुभव गम्य है। अनुभव के रूप में वो जन्म लेता है, साकार होता हैं। अनुभव किसे कहते हैं? अन माने अतीत भव माने संसार, वह जागृती जो हमे संसार से मुक्त कर दे। संसार क्या है, और उससे मुक्ती क्या है, इसका बोध कराती हैं, वह जागृतिविशेषअनुभव हैं।
वो जागृति है क्या? जिस परमात्मा की हमे चाह है, जो कण कण में व्याप्त हैं, जो हमारे सबके हृदय में है,
*राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी। सर्ब रहित सब उर पुर बासी॥*
सबके हृदय में निवास करता हैं। लेकिन कैसे प्रकट होता हैं?
*नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥*
वह निर्गुण ब्रह्म प्रेम के बस में होकर सगुण होते हैं, उनके गुण प्रकट होते हैं। इसलिए सगुण का मतलब होता हैं,अनुभव की जागृति। अनुभव क्या हैं? जिस सतह पर हम खड़े हैं, चाहें घर में हैं, या बन में हैं, हमारी प्रार्थना ऐसी हो,किस राम के प्रती?
हृदय स्थित राम के प्रति, अपने हृदय में जो राम हैं, उनके प्रति।
*व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी,सत चेतन घन आनंद राशी।*
कहां रहता हैं?
*अस प्रभु हृदय अछत अविकारी,सकल जीव जग दीन दुखारी।।*
सबके हृदय में वो रहता हैं। उस हृदय स्थित ईश्वर के प्रति, हमारी श्रद्धा ऐसी हों, हमारा प्रेम ऐसा हो, हमारा नाम का जप इतना उन्नत हो कि वह परमात्मा जागृत होकर हमे बताने लगें, संसार क्या हैं, और इससे मुक्ती क्या हैं। इस जागृति का नाम अनुभव हैं,
जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता।अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता।
और इस अनुभव के आश्रित रहकर जो भजन करते हैं, भगवान की प्रेरणा भगवान का आदेश समझकर के जो भगवान का भजन करते हैं, नाम का जप करते हैं, वे मनुष्य ही नही संत हैं।
और वे ही सगुण ब्रह्म के उपासक हैं। इसको स्पष्ट किया, कुंभज ऋषि ने, कि सगुण ब्रह्म की उपासना क्या हैं? निर्गुण ब्रह्म सगुण कैसे होता हैं? तो भगवान राम ने पुछा कि मैं कहां पर रहूं? तो अगत्स्य ऋषि ने कहा, कि सब जगह आप हैं।
तुम्हरेइँ भजन प्रभाव अघारी। जानउँ महिमा कछुक तुम्हारी॥
तुम्हारे भजन से ही मैं थोड़ी सी महिमां तुम्हारी जानता हूं।
कौन सी महिमा जानते हैं?
ऊमरि तरु बिसाल तव माया। फल ब्रह्मांड अनेक निकाया।।
जीव चराचर जंतु समाना। भीतर बसहि न जानहिं आना।।
ते फल भच्छक कठिन कराला। तव भयँ डरत सदा सोउ काला।।
ते तुम्ह सकल लोकपति साईं। पूँछेहु मोहि मनुज की नाईं॥
अस तव रूप बखानउँ जानउँ। फिरि फिरि सगुन ब्रह्म रति मानउँ।।
जो निर्गुण निराकार ब्रह्म है, वो कैसे सगुण होता हैं। महर्षि कुम्भज कहते हैं कि तुम्हारी जो माया हैं, ये उमर के वृक्ष के समान है। गुलर का जो वृक्ष हैं, उसके समान माया है। इसको उन्होने अपने ह्रदय में देखा। और इस माया में
फल ब्रह्मांड अनेक निकाया।, एक एक ब्रह्मांड एक एक शरीर हैं। हमारा सबका शरीर क्या हैं? एक एक ब्रह्मांड हैं। और हर शरीर में हजारों शरीर के जो कारण हैं , संकल्प विचार वो मौजूद हैं। इस शरीर में एक ही शरीर नही हैं, करोड़ों शरीर हैं। लेकिन इनकी जानकारी कैसे होती हैं? तो कहते है,
ते फल भच्छक कठिन कराला। तव भयँ डरत सदा सोउ काला। ये जो फलों का भक्षण करता है, वो काल है,
वो भी आप के भय से भयभीत हैं। जो भगवान के आदेश से काल के गति को रोकने में सक्षम हैं। जिसके हृदय में अनुभूति मिल रही हैं। उसी अनुभव का नाम राम का जन्म हैं। तो ये अनुभव रुपी राम, भव से मुक्त करा देने वाली जागृति हमारे अंदर प्रकट कैसे होता हैं? कैसे जागृत होते हैं राम, और कैसे रावण का बध करते हैं? सारा साधना क्रम रामचरित मानस है। तो जैसा हम रामचरित मानस में देखेंगे, पहले रावण ने अत्याचार शुरू किया, रावण के अत्याचार से पृथ्वी दुखी हुई।
अतिसय देखि धरम कै हानी। परम सभीत धरा अकुलानी ॥
धरती व्याकुल हुई तो देवताओ के पास गई, देवता लोग मिलके ऋषि मुनीयों के पास गए, देवता मिलके ब्रह्मा के पास गए,
ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई। जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई॥
ब्रह्मा समझ गए लेकिन उपाय नही बता पाए। ब्रह्मा सबको लेकर शंकर के पास गए, तो जब शंकर जी के पास गए तो फिर विचार होने लगा,
सुर सब करहिं बिचारा। कहँ पाइअ प्रभु करिअ पुकारा॥
सब लोग सोचने लगे भगवान को कहा पाए,कहां पुकार करें, कहां प्रार्थना करें? कि ओ परमात्मा हमे मिलेगा या अवतार लेगा,
तो पुर बैकुंठ जान कह कोई। कोउ कह पयनिधि बस प्रभु सोई॥
कोइ कहता था, भगवान बैकुंठ में रहता हैं, कोई कहता था, क्षीरसागर मे रहता हैं। अपने अपने विचार से सब कहने लगे। भगवन शंकर कहते हैं,
तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ। अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ।।
उसी समाज में गिरिजामैं भी था, अवसर मिलने पर एक बात मैंने कही,
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना। प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना।।
भगवान सर्वत्र समान रूप से व्याप्त हैं,
प्रेम से प्रकट होता हैं,। मैने प्रकट किया हैं और जाना हैं। इसलिए भगवान शंकर के हृदय की रचना हैं,रामचरित मानस। क्योंकि उनके हृदय में जो राम था, उसी राम की कथा शंकर जी
बोलते हैं। माता पार्वती का प्रश्न था, राम कौन हैं। उसका समाधान शंकर जी करते हैं,
आदि अंत कोउ जासु न पावा। मति अनुमानि निगम अस गावा।।
जन्मा कब था, मरेगा कब आज तक किसी ने नहीं बताया।
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
बिना पैर के सर्वत्र चलता हैं, बिना कान के सबकुछ सुनने वाला हैं।
कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
हाथ नही हैं, लेकिन सब जगह काम
करने वाला हैं।
आनन रहित सकल रस भोगी।
मुंह नही है, लेकिन सम्पूर्ण रसो को जानने वाला हैं।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
वाणी नहीं हैं, लेकिन करोड़ों लोगों को एक साथ बोल सकता हैं।
जेहि इमि गावहिं बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान। सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान॥
जो बिना पैर के सर्वत्र चल रहा है, बिना हाथ के सर्वत्र कार्य कर रहा हैं।
बिना वाणी के बोल रहा है, यहां।
सर्वत्र व्याप्त है, कोई फ़ोटो खींच सकता हैं?
और बोलते हैं कि वही दसरथ का पुत्र है, यही तो आश्चर्य हैं। इसीलिए तो मुनियों को भी भ्रम होता हैं। इसीलिए तो सती ने पूछा था कि यदि राजा का लडका हैं तो ब्रह्म कैसे? कण कण में व्याप्त कैसे? उसी बात को कहते हैं वही दसरथ का लडका हैं। अब प्रश्न उठता हैं, कि जो सर्वत्र कार्य कर रहा हैं, जिसका हम फोटो खींच ही नही सकते, तो मूर्ती किसकी बनी हुई हैं । तो क्या मूर्तिकारों ने भगवान को देखा हैं? जो कण कण में व्याप्त हैं, जो सर्वत्र कार्य कर रहा है, जिसका फोटो लिया ही नही जा सकता, तो उसकी मूर्ती कैसे बनी? ये भी एक प्रश्न हैं कि मूर्ति पूजा क्या हैं? अलग प्रश्न हैं। भगवान शंकर कहते है कि वही दशरथ का पुत्र है। अब प्रश्न उठता हैं कि दशरथ का पुत्र कैसे होता हैं। माना कि अनुभव ही राम हैं, भव से मुक्त करा देने वाली जागृति ही राम हैं। लेकिन ये अनुभव जागृत कैसे हो? ये भगवान हमारे अंदर कैसे प्रकट हो? ये राम का जन्म जो बिना हाथ पैर के सर्वत्र कार्य कर रहा है, कण कण में व्याप्त हैं, जहां आप हैं, वहां भी है। भगवान शंकर कहतें हैं,
*देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं। कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं॥*
ऐसी कौन सी जगह है जहां भगवान नही हैं। तो वही बात कहते है कि सर्वत्र हैं। पर कैसे प्रकट होता हैं। प्रेम से प्रकट होता हैं। वही दशरथ का पुत्र हैं।
अब ये दशरथ के पुत्र कैसे होते हैं? इसलिए रामचरित मानस में रामकथा हैं। रावण का जन्म होता हैं, फिर उसको मारने के लिए राम का अवतार होता हैं। और उसके बाद राम का विवाह होता हैं, फिर मार्ग में ऋषि मुनि मिलते हैं, फिर राक्षसों से लड़ाई होती हैं, फिर रावण का बध होता हैं फिर रामराज्य होता हैं। उसके बाद रामराज्य की स्थापना होती हैं। जब जन्म लिया राम ने तब पूर्ण राम नही हैं, जब रावण का बध किया तो भगवान राम हैं। रावण को हटा दे तो राम की कहानी का कोई अस्तित्व रह जायेगा? रावण को किसने पैदा किया? इन्ही ऋषि मुनियों ने पैदा किया। भगवान राम की कृपा से ही रावण उत्पन्न हुआ। रावण की कहानी क्या हैं? तुलसीदास जी कहते हैं,
कहेसि बहुरि रावन अवतारा। रावण को भी अवतार कहा है, तुलसीदास जी ने। जिसको हम राक्षस कहते हैं, दशहरे पर जलाते हैं, उसकी उत्पत्ति कहां से हैं?
*द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ। जय अरु बिजय जान सब कोऊ॥*
दो द्वारपाल थे, भगवान के भक्त, जय और विजय,सनकादि ऋषि दर्शन करने जा रहे थे, जय और विजय ने सनकादि ऋषियों को रोक दिया, ऋषियों ने श्राप दे दिया कि जाओ निशाचर हो जाओ। वहीं दोनों फिर क्या हुए? रावण कुंभकर्ण हुए, शिशुपाल, दंतवक्र हुए। उन्होंने कहा भगवान उद्धार कैसे होगा हमारा? भगवान ने कहा चिन्ता मत करो, मैं खुद अवतार लूंगा। जन्म लेकर तीन जन्मों में तुम्हारा उद्धार करूंगा। ये कहानी हैं, पूरी।
तो रावण की उत्पत्ति भी राम के कारण हैं। उस रावण के अंदर भी बल किसका हैं? राम का बल हैं। जब अंगद जी रावण से मिलते हैं, जब रावण अंगद संवाद हो रही हैं, तो रावण से अंगद जी कहते है, कि जिसके अंश मात्र से श्रृष्टि की उत्पति, पालन और विनाश होता हैं,
*जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि। तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।*
जिसका थोड़ा सा बल पाकर तुमने संपूर्ण विश्व को जीत लिया हैं, मै उसी राम का दूत हूं। किसका बल पाया था, रावण ने ? राम का बल। किसने श्राप दिया ऋषियों ने। किसने आशीर्वाद दिया कि मैं मुक्त करूंगा? राम ने। जाओ जन्म ले लो। भगवान ने खुद आशीर्वाद दिया जय विजय को, जाओ राक्षस हो जाओ, मैं जन्म लेकर मुक्त करूंगा। ये रामचरित मानस की कहानी हैं। और अनुभव का मतलब क्या हैं, भव माने संसार, अन माने अतीत, संसार और उससे मुक्ती। संसार क्या है रावण।
ये जितनी भी कथाएं हैं, रामचरित मानस की हो या देवता और असुरों की हो। असुर क्या हैं संसार, देवता क्या हैं, संसार से मुक्त कराने वाली वृत्ति। एक तरफ आपको राक्षस मिलेंगे दुसरे तरफ ऋषि और मुनी मिलेंगे। राक्षस क्या हैं, संसार हैं, संसार से भटकाने वाली वृत्ति, और ऋषि मुनी क्या हैं, संसार से मुक्त करने वाली वृत्ति। अनुभव किसको कहते हैं, जो भव से मुक्त कर दे। इसलिए देवता भी राम से जुड़े हुए हैं, और ऋषि मुनी भी भगवान से जुड़े हैं। असुरो को भगवान को अवतार लेकर मारना होगा, और ऋषियों को तपस्या करके भगवान पाना होगा। ये कहानी किसकी हैं, मनुष्य जाति की हैं, प्रत्येक मनुष्य की। कथा क्या हैं, राम कथा भागवत कथा। लेकिन घटना किसके अन्दर हो रही हैं, प्रत्येक मनुष्य के अंदर। तो हमारे अंदर जो आसुरी वृत्ति है, वो असुर हैं, और जो दैवी वृत्ति हैं, साधना की वृत्ति वो देवता हैं, वही ऋषि मुनि हैं। इसीलिए भगवान का जन्म हुआ। रावण के आतंक से पृथ्वी भयभीत हुई। फिर भगवान ने कहा प्रेम करो परमात्मा प्रकट होगा, प्रार्थना किया, फिर भगवान ने आकाशवाणी दिया कि,
*जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥*
डरो मत मै नर के रूप में अवतार लूंगा। किसके यहां? दशरथ और कौसल्या के यहां। दशरथ कौशल्या कौन हैं? मनु ने तपश्या की हैं, वही दशरथ बने हैं। उनको मैने बचन दिया हैं कि मैं तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा। तो जो परमात्मा मनु को मिल गया था, वही परमात्मा अवतार ले रहा हैं। जिस परमात्मा ने देवताओं के प्रार्थना से द्रवित होकर आकाशवाणी दिया, कि डरो मत मै अवतार लूंगा, वही आकाशवाणी अवतार ले रही हैं। तो अवतार लेने से पहले भी परमात्मा हैं। समझने की जरूरत हैं, यहां। दशरथ के यहां जन्म लेने से पहले है, राम। और आज सामने नहीं है, फिर भी राम हैं। अवतार किसने लिया, अकाशवाणी ने परमात्मा ने, जो कण कण में व्याप्त है। अवतार की विधी क्या हैं? तो दशरथ के अंदर ग्लानी हुई,
*एक बार भूपति मन माहीं। भै गलानि मोरें सुत नाहीं॥*
दशरथ के अंदर ग्लानि हुई पुत्र को लेकर के। और कहां चले गए?
*गुर गृह गयउ तुरत महिपाला। चरन लागि करि बिनय बिसाला॥*
पुत्र के लिए ग्लानि हुई और गुरु के पास चले गए। गुरू वशिष्ठ जी ने कहा कि जाओ यज्ञ कराओ, पुत्र की उत्पत्ति होंगी। वैसे हीं हुआ श्रृंगी ऋषि को बुलाकर यज्ञ कराया, तो चार पुत्र पैदा हुए। कौशल्या से राम हुए। कैकेयी से भरत हुए, सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न हुए,ये कहानी हैं।
अब इसका मतलब क्या हैं? एक तो ये है, रामचरित मानस।
भगवान राम अवश्य जन्म लिए त्रेता में। रावण भी था। जब सही घटना नही घटेगी तो कहानी आयेगी कहां से। भगवान का अवतार भी हुआ, असुरों का बध भी किया, रावण मारा गया। और पूरी दुनिया में शांती स्थापित हुई। एक मर्यादित जीवन सारी जनता जीने लगी। लेकिन केवल मर्यादित जीवन जी लें, अच्छे से खा पी लें, इतना ही सब कुछ नही होता हैं। वो राम जो त्रेता में उत्पन्न हुए, उस शरीर में वो परमतत्व राम कैसे उत्पन्न हुआ? संयोग से उनका भी नाम राम था, लेकिन उसके पहले भी राम था, जो अकाशवाणी दिया, वो भी राम थे। उसी ने दशरथ के यहां जन्म लिया। तो वो परमात्मा आया पृथ्वी पर लीला किया,चला गया। लेकिन हमलोग रामायण क्यों पढ़ते हैं? वो हमारे अंदर कैसे जन्म लें?
हम कैसे उसको प्राप्त करें? भगवान हमसे कैसे बात करें। वो सबके हृदय में हैं, हमारे भी हृदय में हैं। तो वो हृदय का राम कैसे जन्म ले? वो साधना विधि रामचरित मानस है। तो राम के चरित्र वे जो आपके मन में हैं। मन में तो हैं, लेकीन दिखाई तो नही देते। अगर विचार करोगे तो काम के चरित्र क्रोध के चरित्र सब दिखाई देंगे, लेकीन राम के चरित्र नही दिखाई देंगे। जैसे राम की जागृति होती हैं, अनुभव की जागृति होती हैं, और राम पर्यन्त दुरी तय कराते हैं, जहा रावण मरता हैं, वहां तक की साधना रामचरित मानस है।
रचि महेश निज मानस राखा। किसी राजा रानी की कहानी नही हैं। आपके अंतःकरण में घटने वाली घटना हैं। तो राम के जन्म के लिए पहले रावण का होना आवश्यक है। अर्थात् ग्लानि होना आवश्यक हैं। मनु के अंदर जैसे ग्लानि हुई।
*हृदय बहुत दुःख लाग जनम गयहू हरि भगति बिन।*
भगवान के भजन के बिना जीवन बितता चला जा रहा है। बहुत दुख हुआ , और,
*बरबस राज सुतहि तब दीन्हा। नारि समेत गवन बन कीन्हा॥*
दुःख हुआ तो भगवान की प्राप्ती करने के लिए चल दिए। तो पृथ्वी में क्या हुआ?
*अतिसय देखि धरम कै हानी। परम सभोत धरा अकुलानी।*
धरती के अंदर क्या हुआ? धरती घबरा गई।
असुर समूह सतावहि मोहि। असुरों का आतंक इतना हुआ, कि घबरा गई। तो इसका मतलब ये हैं कि, जब भगवान का अवतार होता हैं, हमारे शरीर में हमारे अंदर तो कैसे होता हैं? ये शरीर ही पृथ्वी हैं। जब इस शरीर से हम देवी देवताओं के पास जातें हैं, उद्धार नहीं होता हैं, शान्ति नहीं मिलती हैं। ब्रह्मा के पास गए, ब्रह्म स्थित महात्मा, उनसे भी उद्धार नहीं हुआ, फिर सदगुरु शंकर के पास गए।
शंकर कौन हैं?
*वंदे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकर रूपिणम्।”*
जो सद्गुरु है, वही शंकर रूप हैं। यहां पर जब दशरथ को ग्लानि हुई पुत्र के लिए, तो कहां गए?
*गुर गृह गयउ तुरत महिपाला।*
किसके पास गए? गुरु वशिष्ठ के पास।
वशिष्ठ कौन हैं? जिसके वश में इष्ट हैं। परमात्मा की तपस्या करके जिसने परमात्मा को प्राप्त कर लिया हैं, ऐसा महापुरुष,तत्वदर्शी सदगुरु जो इस धरती पर हैं, वही वशिष्ठ हैं, ज्ञानरुपी वशिष्ठ है। जब वशिष्ठ के पास गए तो उन्होंने कहा यज्ञ करो, पुत्र की प्राप्ती होगी। श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ कराया और राम का जन्म हुआ, दशरथ और कौशल्या से। दशरथ और कौशल्या क्या हैं,और श्रृंगी ऋषि क्या हैं? वास्तव में भक्ती रूपी कौशल्या हैं, और दशरथ का मतलब क्या हैं, और ये शरीर क्या हैं? जो आप देख रहे हैं?
*नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। ग्यान बिराग भगति सुभ देनी।*
ये शरीर जो हमे प्राप्त हुआ हैं, ये किसलिए मिला हैं?
साधन धाम मोक्ष करि द्वारा। ये साधन का धाम हैं, मुक्ती का द्वार हैं। नरक स्वर्ग अपबर्ग निसेनी। इसी मनुष्य शरीर से आप स्वर्ग जा सकतें हैं। महात्मा बुद्ध, शंकराचार्य, भगवान को प्राप्त कर सकते हैं। और इसी शरीर से रावण कुंभकरण, पशु,पंछी और कुछ भी हो सकते हैं,तो ये शरीर क्या हैं? इसी शरीर से मनुष्य ने ईश्वर को प्राप्त किया। इसी शरीर से बुद्ध ईश्वर के स्वरूप हुए, महावीर, शंकराचार्य ईश्वर स्वरूप हुए। और इसी शरीर से हम कुछ नही है। तो ये मनुष्य शरीर स्वर्ग नरक और मुक्ती का दरवाजा हैं। इसी शरीर के अंतराल में परमात्मा हैं।कौन सा परमात्मा? वही राम।
व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी, सत चेतन घन आनंद राशी।
जो कण कण में व्याप्त हैं, वो एक हैं, एक से दो कभी हुआ ही नही। क्या हैं? वही सत्य है, वही चेतन हैं। वही आनंद की राशी हैं। कहां रहता हैं? अस प्रभु हृदय अक्षत अविकारी, सकल जीव जग दीन दुखारी। ऐसा परमात्मा हम सबके हृदय में रहता हैं। तो कैसे मिलेगा? हमको बात करने के लिए कैसे उपलब्ध होगा? हमारे भीतर कैसे जन्म लेगा?
*नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥*
सबके हृदय में रहता हैं, लेकिन हमारी दृष्टी कहा हैं? हमारे अंदर इस शरीर में क्या है? दस इंद्रियां हैं। आंख अपने हिसाब से रूप देखना चाहती हैं, कान अपने अनुकुल शब्द सुनना चाहता हैं। त्वचा स्पर्श करना चाहती हैं। और हाथों से समान इकठ्ठा करना चाहते हैं। पैरों से वहां तक चलना चाहते हैं। तो दसों इन्द्रियों की जो विषयोन्मुखी वृत्ति हैं, संसार की तरफ प्रवाहित हैं। और यहीं दसों विषयोन्मुखी प्रवृत्ति ही रावण हैं। और ये शरीर ही लंका हैं। जब इस शरीर का आकर्षण, आत्मा का आकर्षण संसार के प्रति हैं, भोगों के प्रति हैं, तो यही शरीर लंका हैं। और जब इस शरीर के अंदर आत्मा का आकर्षण परमात्मा के प्रति हो जाता हैं, तो यही शरीर अवध हो जाता हैं। तो दसों इन्द्रियों की विषयोन्मुखी प्रवृत्ति, दसों इन्द्रियों के खुले हुए मुंह दशानन हैं। तो हमारे अंदर जो परमात्मा की शक्ति हैं, जब इंद्रियां बाहर देख रही हैं, तो हमारी चेतना बाहर संसार से जुड़ी हुई हैं। इसी शरीर में परमात्मा हैं, लेकिन हम दुखी हैं।
सकल जीव जग दीन दुखारी। इसी शरीर में त्रिकालज्ञ, सर्वज्ञ परमात्मा हैं, लेकिन हम अपना भविष्य किससे पूछते हैं? अपना भविष्य ज्योतिषि से पूछते हैं। क्यों? क्योंकि दसों इंद्रियां विषयोन्मुखी हैं। रावण हमारे अंदर काम कर रहा है। तो ये किसका आतंक हैं? रावण का आतंक। इसलिए जब रावण होगा ही नहीं, तो राम का जन्म कैसे होगा? जब हम दुखी ही नहीं होंगे, तो दुःख से मुक्त होने के लिए चेष्टा ही क्यो करेंगे। जब काम क्रोध राग द्वेष हमारे अंदर नही होगा, तो हम साधु बनने के लिए क्यों सोचेंगे? इसीलिए एक तरफ़ असुर और दूसरी तरफ ऋषि मुनि और देवता।
तो पहले आसुरी वृत्ति हमारे अंदर प्रकट होती है। मोह रुपी रावण जो सबके अंदर हैं। मोह का मतलब होता हैं संसार के प्रति आकर्षण। तो जब संसार के विषय वस्तु में आपका आकर्षण होगा, तो मोह हो जायेगा, लगाव हो जायेगा। और जब परमात्मा से लगाव होगा, अपने हृदय स्थित ईश्वर से आशक्ति होगी, तो राम पैदा होगा। अनुभव की जागृति होगी। संसार क्या हैं, उससे मुक्ति कैसे होगी। ये उपाय भगवान जागृत होकर हमे बताने लगेंगे, इसी शरीर में। तो जब हमारी चेतना संसार से जुड़ी हुई हैं, तो इसी शरीर को लंका कहते हैं, और हमारे अंदर रावण काम कर रहा हैं। और जब यही चेतना भगवान से जुड़ जाती हैं, तो हमारे अंदर राम का जन्म होता हैं। तो राम किसके लड़के हैं? दशरथ पुत्र।
*एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट मे लेटा।*
घट घट मे जो लेटा हुआ है, अस प्रभु हृदय अक्षत अविकारी, सबके हृदय में हैं। हृदय किसको कहते हैं, क्या हैं हृदय? तो जिस शक्ती से हम योजना बनाते हैं, इसको मन कहते हैं, निर्णय लेनेवाली शक्ती बुद्धि हैं। और निर्णय के हिसाब से बार बार उसी का चिन्तन कर ले गए तो उसी को चित्त , और कार्य पूरा हो गया, मैंने ये किया मैने वो किया। ये जो चतुष्ट अंतःकरण हैं, उसी को कहते है, हृदयदेश। यह अंतःकरण कहां काम कर रहा है? मन बाहर योजना बना रहा हैं, संसार की, कामना बाहर कर रहा हैं, बुद्धि बाहर निर्णय ले रही हैं। तो ये रावण का क्षेत्र हैं। और जब हृदय स्थित परमात्मा में श्रद्धा स्थिर हो गई, अपने अंदर के राम में,बुद्धिं ने निर्णय ले लिया, परमात्मा को प्राप्त करने का, नाम का जप करने लग गए, तो दस इन्द्रियों की निरोधमयी जो वृत्ति हैं, वही दशरथ हैं। ये निरोध करने की विधि किसने बताई? ज्ञान रूपी वशिष्ठ, जिसने इष्ट को बस में कर लिया हैं। जिसने राम को प्राप्त कर लिया है। ऐसा महापुरुष हमको मिला, तब उसने संयम करने की विधि बताई। ये महापुरुष हमको कैसे मिलेंगे। इस संसार में राम जिसके वश में है, ऐसे महापुरुष हम पहचानेगे कैसे? तो
*मन कर्म वचन छाडि चतुराई, भजत कृपा करि हहिं रघुराई।*
जब हृदय स्थित राम में ईश्वर में जब श्रद्धा स्थिर करेंगे।
तो कैसे श्रद्धा स्थिर करेंगे, कैसे उसको प्रकट करेंगे, कैसे भगवान प्रेरणा देगा?
*नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें॥*
नाम के जप से। ये नाम का जप किस तरह से होता हैं। ये चार प्रकार से होता हैं। इसमें जो श्रृंगी ऋषि हैं, वो क्या हैं? वो स्वास और प्रश्वास से नाम का जप। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,
*_यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि* , तो,
जहँ जप जग्य जोग मुनि करहीं, नाम का जप,यही श्रृंगी ऋषि है। श्रृंगी ऋषि ने यज्ञ किया, तब दशरथ को पुत्र पैदा हुआ। तो सदगुरू के यहां जाते हैं, तो वो क्या बताते हैं? हृदय स्थित राम में श्रद्धा स्थिर करो, दसों इन्द्रियों का संयम करो, और नाम का जप करो। तो नाम का जप कैसे करना है? बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ती और परा। नाम के जप करने से ही राम प्रकट होगा।
*नाम निरूपन नाम जतन तें। सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें* ॥
और कबीर दास जी कहते हैं,
*एक राम घट घट मे लेटा, एक राम दशरथ का बेटा।* घट घट मे लेटा हुआ राम, हृदय में प्रशुप्त राम दशरथ का पुत्र कैसे होता हैं, वही विधि यहां रामचरित मानस में बताई जा रही है। तो पहले श्रद्धा स्थिर करो, नाम का जप करो, फिर जब नाम का जप करने लगोगे तो सदगुरू आपको मिल जायेंगे। फिर श्वास और प्रश्वास से नाम का जप होने लगेगा। कैसे होता है, जैसे राम या ॐ। वैदिक काल में जिसको ॐ कहते थे, उसी को भक्ती काल में राम कहते हैं।
*ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्* ।
ॐ जो अक्षय ब्रह्म हैं,उसका सम्बोधन हैं।राम कौन है?
*राम ब्रह्म चिन्मय अविनाशी* ,
राम भी चिन्मय ब्रह्म हैं।
*सर्व रहित सब सुर पुर वासी।*
सबके हृदय में निवास करता हैं, लेकिन सबसे रहित है। जिस ब्रह्म का संबोधन ॐ हैं, उसी का संबोधन राम हैं। राम का हमारे अंदर जन्म हो, राम हमारे अंदर प्रकट हो, इसके लिए क्या करना है? श्रध्दा हृदय में स्थिर करो, नाम का जप जीभ से करों।
*राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार। तुलसी भीतर बाहरौ जस चाहत उजियार।*
हमे संसार में रहना है सुखपूर्वक या भगवान की प्राप्ती करनी हैं, दोनों स्थितियों में नाम का जप करना हैं। भगवान तभी जन्म लेंगे। जब सारा काम निपट जाए तो शांती से बैठकर के आधा घंटा राम राम राम राम, ऐसे जीभ से जपो। फिर जीभ से जपते जपते, मन में प्रेम उत्पन्न हो जाय, तो फिर कंठ से जपो, तालु का स्पर्श करके अंदर ही जपो, खुद ही राम राम राम राम जपो और खुद ही सुनो। फिर जब ये जप होने लगे, तो पश्यन्ती से जपो। पश्य माने देखना, किसको देखना? स्वास को,
इसी को श्रृंगी ऋषि कहा गया, इसी को जप यज्ञ कहा गया। महात्मा बुद्ध इसी को श्वसन क्रिया, पानापान कहते हैं। तो श्वास को देखना है, श्वास तालु का स्पर्श करते हुए नाभि तक जाती हैं, फिर इसी रास्ते से वापस हो जाती हैं। हम जब पैदा हुए तो भी श्वास ऐसी थीं, जवान हुए तब भी ये श्वास ऐसी हैं, और वृद्ध होते हैं, तो भी श्वास ऐसी ही रहतीं हैं। केवल शरीर बदलती हैं, लेकिन श्वास वही रहतीं हैं। इसी श्वास से बाहर हम संसार से जुड़े हैं, शरीर से जुड़े हैं, और इसी श्वास से भीतर हम परमात्मा से जुड़े हैं। श्वास छूट गई,न परमात्मा हैं, न शरीर हैं, न संसार हैं। तो यही श्वास परमात्मा तक पहुंचने की सीढ़ी हैं, इसीलिए इसको श्रृंगी ऋषि कहते हैं। तो श्वास को देखो, कब अंदर गई समझो, कब बाहर आई कितनी रुकी समझो, जब दस पंद्रह बार देखने में आ जाय, तो जिस नाम को आप जीभ से जपते थे, उसी नाम को जब श्वास अंदर गई तो राम, बाहर आई तो राम, सुरत से देखो,संत कबीर इस अवस्था को कहते हैं, रा और म के बीच में कबिरा रहा लुकाय। रा और म इन दो शब्दो के बीच में जो साढ़े तीन हाथ का जो कबीर का शरीर था, पाच छह फीट का वो छुप गया। राम छोटा सा शब्द उसमे इतना बड़ा शरीर कैसे आ गया? तो जहां मन होता हैं, वहीं शरीर होता हैं। ये जो जाप हैं, श्वास का पश्यन्ती का, ये मन से होता हैं। जब श्वास को देखेगा, तो दुसरे विचार नही करेगा। और दुसरे विचार करेगा तो श्वास में राम नही सुनेगा। तो श्वास गई तो राम श्वास आई तो राम, अन्य विचार जब शांत होते हैं, इसी को कहते हैं श्रृंगी ऋषि का यज्ञ जो दशरथ ने किया। किसने किया ? दशरथ जी ने।
ये कैसे होता हैं? श्वास में आप नाम कब सुन सकते हैं? जब दसों इंद्रियां संयमित हो कर सुनेगी तब। जब दसों इंद्रियां,आंख बाहर देख रही हैं,कान बाहर सुन रहा हैं, तो श्वास नहीं दिखाई पड़ेगी। जब संयमित हो जाएंगी, तब जाकर नाम सुनाई देगा। अंदर आई तो राम बाहर गई तो राम, तो दसों इन्द्रियों की निरोधमयी वृत्ति दशरथ हैं। विष्योन्मुखी वृत्ति थी, तो यही दशानन था, संयम कर लिया, तो यही दशरथ हो गया, तब ये शरीर ही अवध हो गया। अबाध्य स्थिती का संचार हो गया। तो जैसे ही दशो इन्द्रियों का संयम सधा, श्वास से नाम का जप होने लगा, तो यही है, भक्ती रूपी कौशल्या। हम किससे जुड़ गए? अपने ही अंदर के राम से जुड़ गए। भक्ती माने, जुड़ना, विभक्त माने अलग होना।
कैसे जुड़ गए? नाम जप में मन लग गया, नाम जपते जपते श्वास में मन एकाग्र हो गया, बुद्धी एकाग्र हो गया, इंद्रियां संयमित हो गईं, समग्र चेतना जो बाहर भटकती थी, समुचा चित्त सिमटकर के कहां लग गया? श्वास अंदर गई तो राम बाहर आई तो राम, तो ये क्या है? भक्ती हैं, किससे जुड़ गए हम? भगवान से जुड़ गए। और कौशल्या क्या हैं? भक्ति रूपी कौशल्या।
*ब्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत बिनोद। सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद*
जो व्यापक था, निरंजन था, अव्यक्त था, बही प्रेम और भक्ती के बस में होकर कौशल्या के गोद हो गया। भक्ती माने जुडना। भगवान से जैसे ही हम जुड़े, किस राम से? हृदय स्थित राम से। जैसे ही श्रद्धा स्थिर हुई, नाम जप में मन लगा, सदगुरू के चरणों में लगा, वैसे ही वो राम प्रकट हो जाता हैं, राम का जन्म हो जाता हैं। दशरथ पुत्र राम। और कबीरदास जी कहते हैं? एक राम दशरथ का बेटा, तुलसीदास जी भी वहीं कहते हैं, जैसे ही दसों इन्द्रियों का संयम सधा, वैसे ही वो राम प्रकट हो गया। और बेटा का मतलब क्या होता हैं? बाहर आपको पुत्र होता है, तो आप क्या करते हैं? जब आप बड़े हो गए, बेटा जिम्मेदारी सहन करने लायक हो गया, सक्षम हो गया, तो बाप अपना सारा भार, बेटे को सौप देता हैं। यहां पर दसरथ क्या चाहते थे, सारा भार राम को देना चाहते थे। तो जैसे ही इंद्रियां संयमित होती हैं, भगवान की जागृति हो जाती हैं। इसी को कहते हैं, अनुभव रूपी राम। भव (संसार? क्या हैं,और उससे मुक्ती क्या हैं? जब हमारा नाम जप में मन रुक जाता हैं, तो हमारे हृदय का ही ईश्वर जागृत होकर के हमको बताने लगता हैं, कि ये संसार हैं, ये मुक्ती हैं। ये गुण है, ये दोष हैं, ये रावण हैं, ये राम हैं। ये दैवी प्रवृत्ति हैं, ए आसुरी प्रवृत्ति हैं, इधर चलोगे तो भगवान मिलेंगे, और इधर चलोगे तो, संसार। ये बात भगवान बताने लगते हैं। अर्थात् तीनों कालों की जानकारी मिलने लगती हैं, क्योंकी परमात्मा का स्वरूप हैं, त्रिकालज्ञता, सर्वज्ञता। जो नाम जपते जपते श्वास में मन रुका, इंद्रियां संयमित हुई, तो ह्रदय का ईश्वर प्रकट हो जाता हैं। और इसी श्वास से नाम के जप को क्या कहते है? इसी को मंत्र कहते हैं। जब श्वास के अंतराल में मन रुक जाता हैं, तो यही राम नाम का जप जो आप जीभ से जपते हैं, वही मंत्र हो जाता हैं, और कोई अलग से मंत्र नहीं हैं। मन रुक गया, श्वास में तो मंत्र हो गया। भगवान प्रकट हो करके क्या करते हैं? भगवान राम का अवतार हुआ, तो तुलसीदास जी लिखते हैं, कि कि किसलिए अवतार हुआ,
*असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु। जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥*
कौन सा राम प्रकट हुआ?
बिन पग चलई, सुनहि बिन काना। जो बिना पैर के सर्वत्र चलता था, बिना हाथ के सर्वत्र काम करता था, इंद्रियों के संयम के साथ वही राम प्रकट हुए। कबीर दास जी के हिसाब से कौन प्रकट हुआ? एक राम घट घट मे लेटा, एक राम दशरथ का बेटा, दोनो का एक ही राम। तुलसी का भी वही राम, कबीर का भी वही राम। दसों इन्द्रियों के निरोध के साथ कबीर और तुलसी दोनों का राम सगुण हो गया। तीनों गुण सत रज तम, कब सतोगुण आ रहा है, कब रजोगुण आ रहा है, भगवान इसको बताने लग गए। कब तमोगुण आ रहा है, कब काम क्रोध राग द्वेष आ रहे हैं, भगवान इसको बताने लग गए, और बचाने लग गए। दस दिन बाद कौन सी घटना घटेगी, दस दिन पहले ही बताने लग गए, त्रिकालज्ञता जागृत हो गई। इसी को अनुभव कहते हैं। जिस भगवान का हम नाम जप रहें हैं, वो हमारे ही अंदर हैं, लेकिन हम नही जानते। वही परमात्मा जागृत हो जाय, उसकी त्रिकालज्ञता प्रकट हो जाय, भगवान हमको भूत भविष्य वर्तमान के बारे में बताने लगें, अनुभव देने लगे, भव संसार क्या है, और उससे मुक्ती क्या हैं? ये चीज बताने लगें इसी को कहते हैं, राम का जन्म। अनुभवों की जागृति, और इसी को कहते हैं, सगुण ब्रह्म की जागृति। जो निर्गुण निराकार था, जो नही बोलता था, जो सर्वत्र कार्य करता था, लेकीन हम नहीं जानते थे, वही हमारे अंदर कार्य करने लग गया। कौन सा कार्य करने लग गया, क्या हैं, भगवान का कार्य?
*असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु। जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥*
असुरों को मारते हैं, देवताओं की स्थापना करते हैं, तो असुरों को मारने का मतलब क्या है, क्या है असुर?
हमारे अंदर काम हैं क्रोध हैं, लोभ हैं मोह हैं। मोह रुपी रावण क्रोध रूपी कुंभकर्ण, अंहकार रूपी अहिरावण
प्रकृति रूपी सुपर्णखा, काम रूपी मेघनाथ, ये जो विकार हैं, यही असुर हैं। यही हमको असुर बनाते हैं। और क्या है, साधु क्या हैं देवता? विवेक वैराग्य, सम, दम,तेज और प्रज्ञा। ये गुण हमको साधु बनाते हैं, देवता बनाते हैं। तो हमारे अंदर जब भगवान जागृत हो जाते है तो क्या कराते हैं? इन आसुरी वृत्तियों का नाश कराते हैं। विवेक वैराग्य को निर्विघ्न प्रवाहित करते हैं। यही इस राम के जन्म का हेतु हैं। नवमी तिथि मधु मास पुनीता। ये नवमी तिथि क्या हैं? हमारे अंदर ये नौ इंद्रियां हैं। ये नौ इन्द्रियों में स्थिती बदल रही हैं, स्थिर नहीं हैं। इनमे जो परिस्थिती हैं, स्थिती हैं, सब पुरानी हैं। नवीन स्थिती कौन सी होती हैं? जब ये इंद्रियां संयमित हो जाती हैं, संयमित होकर नाम का जप करने लगती हैं, भगवान जागृत होकर तीनों कालों की जानकारी देने लगते हैं, तब ये नई स्थिती हैं। तो नौ इंद्रियां संयमित हो जाती हैं, भगवान जागृत हो जाते हैं, इसलिए रामनवमी।
राम का जन्म कब हुआ? नवमी को।
नवमी तिथि क्या हैं? नौ इन्द्रियों का संयमित होना। संयमित होकर नाम जपने लग गए, भगवान प्रकट हो जाते है, इसलिए रामनवमी। आपके अंदर का ही ईश्वर आप के अंदर जागृत हो जाता हैं। जो त्रिकालज्ञ था, सर्वज्ञ था, हम नहीं जानते थे, जिस व्यक्ति के अंदर त्रिकालज्ञ परमात्मा मौजूद था, अनुभव जागृत होने से पहले नही जानता था, अनुभवों की जागृति हुई राम का जन्म हुआ, वही व्यक्ती अपना भूत और वर्तमान भविश्य देखने लगता हैं, जानने और समझने लगता हैं। तो जब ये घटना घटने लगे, तो समझो राम का जन्म आपके अंदर हो गया। इनका सारा काम क्या हैं? आसुरी वृत्तियों को समाप्त करना। तो भगवान जिस विधि से जागृत होते हैं, और जागृत होकर राम की प्राप्ती कराते हैं। भगवान राम जब बाल्मिकी जी के पास जब पहुंचे, तो बोले कहा रहूं? तब महर्षि वाल्मीकि जी ने कहा, कि आप कहा नहीं हैं? भगवान सोचे कि यहां तो सब कुछ पोल खुल गई। मैं सोचता था, कि ये नहीं जानेंगे। तो बाल्मीकि जी ने कहा आप कहां नही हैं, आप सब जगह हैं, उन्होंने कहा,
*चिदानंदमय देह तुम्हारी। बिगत बिकार जान अधिकारी॥*
आपका जो देह है, वो चिदानंदमय हैं, विकार से मुक्त हैं, केवल अधिकारी जानता हैं। कैसे जानता हैं?
*सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥*
अपको भगवन वही जानता हैं, जिसके अंदर आप प्रकट होकर के उसको आप समझाने लगे, बताने लगें कि ये सही है ये गलत हैं। साधना कराने लगे वहीं आपको जानता हैं, और जानके क्या हो जाता हैं? *जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥*
किस किसने जाना और कौन कौन भगवान के स्वरूप हुए?
*उलटा नाम जपत जग जाना।वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना*।
बाल्मीकि क्या थे? कोल किरात दस्यु थे, भगवान के नाम का जप किया, ब्रह्म के समांतर हो गए। जिस राम का भजन किया, उसी राम के स्वरूप हो गए। जानत तुमहि तुमही होई जाई।
और कौन हुआ?
*राम नाम जेहि,जपत महेसू, कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।*
भगवान शंकर कहते हैं।
*हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होई मै जाना।*
प्रेम किया और मैंने प्रकट किया। कैसे प्रेम किया,?
*तुम पुनि राम राम दिन राती।*
यही नाम का जप किया, और अपने अंदर उस, निर्गुण निराकार ब्रह्म को सगुण रूप में प्रकट किया। इसलिए भगवान शकर भी भगवान हो गए। और कौन भगवान हुआ?
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।
हनुमान जी ने नाम का जप किया, हनुमान जी कौन हो गए? हनुमान जी भी भगवान के स्वरूप हो गए।
ध्रुवँ सगलानि जपेउ हरि नाऊँ। पायउ अचल अनूपम ठाऊँ॥
ध्रुव ने भी नाम का जप किया, वो भी भगवान के स्वरूप हो गाए। प्रहलाद ने भी नाम का जप किया, बो भी भगवान का स्वरूप हो गए। बुद्ध ढाई हजार वर्ष पहले हुए, उन्होंने भी नाम का जप किया। क्या कहा उन्होंने? मैं सत्य को जानुगा या शरीर छोड़ दूंगा। ये सुंदर शरीर इसके पीछे इतना भयंकर रोग, खा पीकर मर जाना इतना ही सबकुछ हैं, या इसके आगे भी कुछ और हैं ? सत्य क्या हैं? सत्य को जानने के लिए चल दिए। रामचरित मानस में सत्य किसे कहा गया?
*धरम न दूसर सत्य समाना। आगम निगम पुरान बखाना॥*
क्या है सत्य?
*व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी, सत चेतन घन आनंद राशी।*
जिसको तुलसीदास जी, शंकर भगवान आनंद की राशी कहते हैं, जिस परमात्मा को रामायण में सत्य कहा गया, उसी को महात्मा बुद्ध सत्य कहते हैं। और सत्य की प्राप्ती के लिए चल दिए। और उसके बाद कौन सी साधना की? अपने शिष्यों से उन्होंने कहा, भिक्षुओं स्वसन क्रिया पर घ्यान दो। इसी स्वास को उन्होंने देखा। श्वास अंदर आई तो राम, बाहर गई तो राम। बुद्ध के अंदर भी वही राम प्रकट हुआ, जो दशरथ पुत्र थे। जो निर्गुण निराकार है, जो भगवान शिव के अंदर प्रकट हुआ, जो महर्षि वाल्मीकि के अंदर प्रकट हुआ? उसी राम का जप बुद्ध ने श्वास प्रश्वास से किया। उनके अंदर भी राम प्रकट हुआ। और एक राजकुमार सिद्धार्थ जो ढाई हजार वर्ष पहले हुए, भगवान बुद्ध हो गए, भगवान के अवतार हो गए। तो ये विधि आप सबके लिए हैं, आप सब इस राम को प्रकट कर सकते हैं। तो करना क्या हैं? शांति से बैठ जाइए, आधा घंटे नाम का जप, पहले जीभ से, फिर श्वास से। और जैसे ही मन रुका, वैसे ही जिसका नाम राम हैं, जो त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ परमात्मा हैं वो प्रकट हो जाता हैं। किस रुप में प्रकट होता हैं? अनुभव के रूप में। अनुभव का मतलब होता है, कि,हमारा नाम जप, हमारी प्रार्थना, हमारी श्रध्दा, हमारा प्रेम, इतना उन्नत हो जाय, कि वह परमात्मा हमारा मार्गदर्शन करने लगे। क्योंकि भगवान प्रेम से प्रकट होते हैं। जब आप किसी व्यक्ती को बार बार देखने लगो तो प्रेम हो जाएगा। किसी वस्तु को बार बार देखने लगो तो प्रेम हो जायेगा। परमात्मा हम सबके अंदर हैं, लेकिन हमको वो याद नहीं हैं। हमने परमात्मा की स्मृति खोई हैं। उसको कैसे हमे याद करना हैं, उसका नाम जपना हैं। गीता में आया है,
*ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्।*
ॐ का जप, रामायण में आया हैं, राम का जप दोनो का अर्थ एक ही हैं। चाहें ॐ जपो चाहे राम जपो। ओ का मतलब होता हैं, वह परमात्मा अहम माने मतलब हम स्वयं, जिसका निवास हमारे अंदर हैं।
राम क्या हैं?
*रमंते योगिनः अस्मीन सः रामः* जो सबमके हृदय में रमण करता है ,इसलिए राम। राम ब्रह्म व्यापक जग जाना। राम कौन हैं? ओ कण कण में व्याप्त ब्रह्म। ॐ कौन हैं? *ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म,*
तो गीता में जिसको ब्रह्म कहा गया, रामायण में उसी को राम कहा गया। उसी राम का, उसी ब्रह्म का अवतार जितने भी महापुरुष हुए सब हैं। केवल राम ही, नहीं, कृष्ण ही नहीं, शंकर ही नही।
सब बुद्ध, महावीर जो भी इस देश में हुए, और दुसरे देश में हुए, सब उसी अविनाशी ब्रह्म के अवतार हैं। सबके अंदर वही परमात्मा प्रकट हुआ। सबके अंदर इसी राम ने जन्म लिया, इसलिए सब भगवान के स्वरूप हुए। और अगर हमे भी प्रकट करना हैं, तो हमारे अंदर भी वही त्रिकालज्ञ वही सर्वज्ञ राम हैं।a तुलसीदास जी कहते हैं, सोई दशरथ सुत, जो कण कण में व्याप्त है, वही दशरथ का लड़का हैं। दसों इन्द्रियों के निरोध के साथ, श्वास प्रश्वास के जप के साथ प्रकट होता हैं। कबीर दास का भी वही राम हैं। जैसे निरोध हुआ दशरथ का बेटा हो गया, कबीर और आगे बढ़ते हैं। एक राम का सकल पसारा, एक राम सब जग से न्यारा। ये सकल पसारा वाला राम कौन सा हैं? तो तुलसीदास जी भी उसी के समांतर चलते हैं। कबीर कहते हैं कि एक राम का सकल पसारा। जब हमारे अंदर भगवान का जन्म हो गया, जागृति हो गई तो साधना करने लगते हैं। भगवान के मार्गदर्शन में चलने लगते हैं। तो भगवान के मार्गदर्शन में चलते चलते एक ऐसी अवस्था आती हैं, कि,
*सरगु नरकु अपबरगु समाना। जहँ तहँ देख धरें धनु बाना।।*
तुलसीदास जी की जब ये अवस्था आई, तो क्या कहते हैं? न स्वर्ग, स्वर्ग के रूप में न नरक, नरक के रूप में सर्वत्र राम ही राम दिखाई दिए। कबीर दास जी क्या कह रहे हैं, कि एक राम का सकल पसारा, जो राम सब जगह कबीरदास जी को दिखाई दे रहा हैं, वही राम तुलसीदास जी को धनुष बाण लिए सब जगह दिखाई दे रहा है।
तो अलग अलग हैं? एक ही राम हैं, कबीर कहते हैं, सकल पसारा तुलसी दास कहते हैं, जह तहँ देख धरें धनु बाना। वहीं राम हैं दूसरा राम नही हैं। पहले अवस्था क्या हैं, घट घट मे लेटा हैं, सबके हृदय में। दसों इन्द्रियों का निरोध किया, नाम का जप किया, दाशरथ का बेटा हो गया। और फिर साधना करने लगे, तो साधना करते करते ऐसी अवस्था आ गई, जहां भी दृष्टी पड़े भगवान दिखाई देने लग गए। सकल पसारा हो गए। और एक राम सब जग से न्यारा,
*जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥*
जिस महात्मा के हृदय में जिस भक्त के हृदय में, ये घटना घटती है, वो कहां रहता हैं? इसी संसार में।
हमलोग जान पाते हैं? ये जो करोड़ों की आबादी हैं, इस आबादी में किस महापुरुष के अंदर ये स्थिती प्रकट हुई या राम प्रकट हुआ,आप जान सकते हैं? इसी संसार में रहता हैं, लेकिन संसार से न्यारा हैं। वो महापुरुष स्वयं राम का स्वरूप हो जाता हैं। तो राम का स्वरूप जो महापुरुष हो जाता हैं, उसके अंदर क्या बिभूति होती हैं, उस राम का क्या स्वरुप होता हैं? उसको तुलसीदास जी बताते हैं, कि इस संसार में कौन सा मानुष्य राम का स्वरूप हैं। कौन सा महात्मा भगवान राम का रूप हैं, तो,
*अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान। मनुज वास सचराचर रूप राम भगवंत।*
तो जिस महापुरुष का अहंकार, आकार,स्वरूप शिव हो गया।
शिव का मतलब क्या होता हैं?
जो प्रकृती को सीमाओं से अतीत हैं, जो कल्याण तत्त्व हैं, जो शंकाओं से अतीत हैं, तो जिस महापुरुष का स्वरूप शंकाओं से अतीत हो गया, वो क्या हो गया?वह महापुरुष शिव हो गया। और बुद्धि अज, जिस महापुरुष की बुद्धी ब्रह्मा हो गई, राम बोलता हैं, उसकी बुद्धी केवल ग्रहण करती हैं, और जबान से व्यक्त करती हैं। बुद्धी समाप्त हो गई, किस रुप में? भगवान को धारण कर लिया, भगवान की वाणी को व्यक्त करने लगी। तो वही महापुरुष शंकर हो गया कल्याण स्वरूप होकर, वही ब्रह्मा हो गया, जब बुद्धी रिले करने लग गई उस ब्रह्म की परमतत्व परमात्मा की तो वही महापुरुष ब्रह्मा हो गया। और मन ससि चित्त महान, उसी महापुरुष का चित्त जब शांत हो गया, शान्त होके निरोध होकर बिलिन हो गया, तो वही विष्णु हो गया। तो जिस मनुष्य के अंदर, जिसका आकार जिसका स्वरूप शिव हो गया, और जिसकी बुद्धी ब्रह्मा हो गई, और जिसका चित्त विष्णु हो गया,
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत।
जिस मनुष्य के अंदर साधना करते करते, भजन करते करते ये स्थिती आ गई, वही मनुष्य इस संसार में, सगुण ब्रह्म का राम का रूप हैं। इसलिए,
*गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः।*
इसलिए गुरु सब कुछ हैं। इसीलिए तुलसीदास जी कहते हैं,
*गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई, जौ बिरंचि संकर सम होई।*
क्योंकी गुरु की अवस्था ब्रह्मा और शंकर से भी आगे हैं।
*अहंकार सिव बुद्धि अज मन ससि चित्त महान।*
ये सब उसकी बिभुतियां हैं। वो क्या हैं? साक्षात परम ब्रह्म। तो जिसके अंदर वो कण कण में व्याप्त राम हृदय स्थित ईश्वर, इस रूप में प्रकट हो गया कि उसका स्मरण करो आपका कल्याण होने लगेगा। इसलिए, घ्यान मूलं गुरुर मूर्ति, आप उस सदगुरू का घ्यान करो, आपका कल्याण होने लगे, शिव कार्य करने लगे। उनका ध्यान करो और आपकी बुद्धी भगवान से संचालित होने लगे। भगवान आपकी बुद्धी में बोलने लगे, निर्णय करके देने लगे। उस महापुरुष का घ्यान करो, और आपका चित्त शांत हो जाय, विष्णु के लक्षण आ जाय। वो महापुरुष इस संसार में सदगुरू हैं, और वही राम के स्वरूप हैं। वही बुद्ध हैं, वही राम हैं, वही कृष्ण हैं। वहीं
साक्षात ब्रह्म के का स्वरूप हैं, उसी के अंदर निर्गुण ब्रह्म सगुण हुआ हैं। इस तरह से ये पूरी रामचरित मानस क्या हैं? हृदय स्थित ईश्वर की जागृति उसका जन्म है। और उस ईश्वर की जागृति, जन्म होने के बाद, उस ईश्वर के निर्देशन में चलना, हृदय स्थित ईश्वर को प्रत्यक्ष जान लेना, और जानत तुमहि तुमही होई जाई, जानकर के ब्रह्म का स्वरूप हो जाना, ये सारा साधना क्रम रामचरित मानस है। इसलिए ये रामचरित मानस, किसी राजा रानी की कहानी नही, आपके अंतःकरण में घटने वाली घटना हैं। राम कौन हैं? आपके ही हृदय का ईश्वर। और राम जन्म क्या है? जब वह ईश्वर प्रकट होकर के तीनों कालों की जानकारी देने लगे। दस दिन बाद घटने वाली घटना को दस दिन पहले बताने लगें। तो समझो राम का जन्म आपके अंदर हो गया। और ये घटना घटती है किसके अन्दर?
*जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी। तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी* ॥
ये त्रेता में कभी घटी थी, ऐसी बात नहीं, आप आज प्रेम करो अपने हृदय स्थित परमात्मा से, आप आज नाम का जप शुरू करो, दो तीन महीने में, वो राम प्रकट हो जाएगा, जागृत हो जायेगा। उस राम का जन्म हो जायेगा। और ऐसी भी बात नहीं है, लोग कहते हैं मैं पापी हू, कुछ कहते हैं स्त्रियां भजन नही कर सकती। भगवान राम कहते हैं।
*पुरुष नपुंसक नारि वा जीव चराचर कोइ। सर्ब भाव भज कपट तजि मोहि परम प्रिय सोइ॥*
पुरुष हो, स्त्री हो,नपुंसक हो, कोई भी चराचर जीव हो,संपूर्ण भावों से मुझ हृदय स्थित ईश्वर में, अंदर के राम में जो श्रद्धा स्थिर करके, भजन करता हैं, भगवान कहते हैं, वो मुझे प्राणों के समान प्रिय होता हैं।
*भगतिवंत अति नीचउ प्रानी। मोहि प्रानप्रिय असि मम बानी।*
भगतिवंतअत्यंत नीच भी प्राणी है, तो भी मुझे परमप्रिय है, और बाहर राम के मंदिर में शूद्र नहीं जा सकता। शुद्रों को मन्दिर में जाने का आधिकार नही है। और अंदर का राम कहता हैं, जो मेरी भक्ती करता हैं, हृदय स्थित राम से जुड़ा हैं, तो वो चाहें अत्यंत नीच, जिसे दुनियां कहती हैं, वो मुझे प्राणों के समान प्रिय है। और,
*भगति हीन बिरंचि किन होई। सब जीवहु सम प्रिय मोहि सोई॥*
और भक्ति से रहित, कौन सी भक्ति ?अपने ह्रदय स्थित ईश्वर से जुड़ना,राम से जुड़ना, उसकी भक्ति से रहित श्रृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ही क्यों न हों, वो भी मुझे उतना ही प्रिय है, जितना अन्य जीव हैं, कुत्ता बिल्ली सियार, उससे ज्यादा प्रिय नहीं हैं। तो भगवान राम का पूजा करने का अधिकार किसको हैं? अत्यंत दुराचारी को भी। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,
*अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्। साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।*
और यहां मंदिरो में शूद्र नहीं जा सकता, स्त्रियां नही जा सकती, ऐसी व्यवस्था हैं। तो प्रत्येक व्यक्ति का जो हृदय स्थित ईश्वर हैं, उसका नाम राम है। ये ईश्वर की भक्ती हैं,कोई भी प्राप्त कर सकता है।
लोग कहते हैं कि देवी देवता और राम में क्या अंतर हैं? तुलसीदास जी कहते हैं,उत्तरकांड में,
*दुर्गा कोटि अमित अरि मर्दन॥*
करोड़ों दुर्गाओं के समान राम के पास शत्रुओं को समाप्त करने की क्षमता हैं,तो हम दुर्गाओं को क्यों पूजें? उस हृदय स्थित राम को ही पूजेँ,जो करोड़ों दुर्गाओं के समान है।
*शारद अमित कोटि चतुराई ।*
सरस्वती की हमलोग पूजा करते हैं।
भगवान राम में कितनी शक्ती हैं?
करोड़ों सरस्वती के समान बुद्धी देने की, विद्या देने की क्षमता है, राम में।
तो यदि हमे सरस्वती की पूजा करके प्राप्त करना हैं,वो भी हमे ह्वदय स्थित राम की पूजा से मिलेगा।
*बिधि सत कोटि सृष्टि निपुनाई।*
करोड़ों ब्रह्मा के समान सृष्टि उत्पन्न करने की क्षमता हैं, भगवान राम में।
*बिष्नु कोटि सम पालन कर्ता।*
करोड़ों विष्णुओ के समान पालन करने की क्षमता हैं , तो अलग से विष्णु पूजा की क्या आवश्यकता हैं? राम को पूजो,करोड़ों विष्णु हाजिर।
*रुद्र कोटि सत सम संहर्ता॥*
करोड़ों शंकर के समान संहार करने की क्षमता हैं, उस हृदय स्थित राम में। तो जो ब्रह्मा विष्णु महेश की जो क्षमता है, वो आपके अंदर वाले राम में मौजूद हैं। बल्कि ये उसी राम की प्रशक्ति है। अलग से देवी देवता नहीं हैं। ये तीनों उसी राम की शक्ती हैं। तो इसलिए अगर सभी देवी देवतावो को अनुकूल करना हैं, परमात्मा को भी अनुकूल करना हैं, तो आपको किसकी पूजा करनी हैं? अपने अंदर वाले राम की, अपने हृदय स्थित राम की। बाहर जब हम हृदय स्थित राम की पूजा की विधि नही जानते है, तो बाहर से पूजा आरम्भ करते हैं। बाहर भी जो पूजा पाठ करते हैं, मूर्तियों की पूजा करतें है, ये क्या हैं? वास्तव में भारत में सबसे ज्यादा मूर्तियां हैं, लेकिन भारत के लोग मूर्तिपूजक नही हैं।
तो क्या हैं, फिर ये मन्दिर?
मन्दिर प्राथमिक कक्षा हैं। जैसे बच्चा पैसा होता हैं, समझदार हुआ तो माता कहती हैं,ये तुलसी का पेड़ है, इसमें जल चढ़ाओ, पीपल हैं, इसको नमस्कार कर, ये गांव की देवी हो, इसको नमस्कार कर ये गंगा मईया है, इसको नमस्कार कर। जो छोटा बच्चा हैं, उसके अन्दर श्रध्दा पैदा करने के लिए,ये व्यवस्था पूर्वजों ने दी। जो, अरूप है, अनाम हैं, अमूर्त हैं, उसकी मूर्ती कैसी? तो ये व्यवस्था पूर्वजों ने इसलिए दी कि, जो हृदय का ईश्वर हैं, वहां तक आदमी पहुंचे कैसे? इसलिए बाहर मंदिरों की व्यवस्था हुई। कि चलो यहां से श्रध्दा शुरू करो, जब व्यक्ती श्रद्धावान हो जायेगा, तो एकदिन वो सोचेगा राम कौन?
पार्वती ने प्रश्न किया, राम कौन, भरद्वाज ने प्रश्न किया राम कौन? आप भी अपने में मन प्रश्न करते हैं, कि राम कौन? पूजा तो आप सभी करते हों, लेकिन रामचरित मानस की घटना क्या है? कि जो भी मिल रहा है, राम सबसे बात कर रहें हैं। सबरी से राम बात कर रहे हैं, सुतीक्षण से राम बात कर रहे हैं,
नारद से राम बात कर रहे हैं। तो जब राम बात करता हैं।
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी, हम पूजा कर रहें हैं,रोज मन्दिर में, वो हमसे बात क्यों नहीं करता? क्या है ये, या तो सही जगह पूजा नही हो रही हैं, या फिर जिसकी पूजा कार रहे है, वो राम का स्वरूप नही हैं। तो ये अविधि पूर्वक है, अपने हृदय तक पहुंचना है, तो ये मूर्ती पूजा प्राइमरी स्टेज है। भारत मूर्ति पूजक नही है। श्रद्धा स्थिर करने के लिए, ये मूर्तियां ये मंदिर बनाए गए, ताकि वहां जाते, जातें लोग समझ जाएं, कि राम का मतलब है, हृदय स्थित ईश्वर। उस ईश्वर को कैसे प्रकट करना है? ये शिक्षा मन्दिरों से मिलने लगे। इसलिए पूजा पाठ की व्यवस्था की गई। ये प्राइमरी स्कूल है,प्राइमरी स्टेज है, लेकिन कोई बच्चा प्राइमरी में पढ़ता रहे, जिंदगी भर l,तो वो इंजीनियरी कब करेगा, वो पी एच डी कब करेगा? आगे बढ़ना चाहिए न। इसलिए एक सीमा तक पूजा पाठ सही है, लेकिन एक सीमा के बाद वो गलत हो जाती है। पूरा जीवन बीत गया, उसी पूजा को करतें करते, भगवान से भेंट ही नही हुई, तीस तीस साल हो गए, राम कथा सुनते, सुनते राम का पता ही नही चला। तब फिर आगे की स्थिती है, हृदय स्थित ईश्वर को मानना। मानकर के नाम का जप आरम्भ करना। तो इसलिए भारत मूर्तिपूजक नही है, श्रद्धा स्थिर करने के लिए, ये मंदिर और मूर्तियों की स्थापना हुई, ये प्राथमिक स्तर है। जब आगे बढ़ते है, तुलसीदास घर में थे तो मूर्तिपूजक, बुद्ध घर में थे, मूर्तिपूजक, महावीर घर में थे,मूर्तिपूजक आप ही के तरह। शंकराचार्य, कबीरदास सब मूर्ती पूजक, लेकिन जैसे ही हृदय स्थित ईश्वर में श्रद्धा स्थिर हुई तो बुद्ध ने कहा, मैं सत्य को जानूंगा। सत्य को जानने कहा गए ? जंगल में तपस्या करने, शंकराचार्य कहां गए तपस्या करने। सब महापुरुष बाहर निकल गए, तपस्या करने। तो सत्य को जानने के लिए आपको तपस्या भजन करनी पड़ेगी। तपस्या का मतलब ये नही कि आप घर छोड़ कर चल दो। आपका तपस्या,आधा घंटा जो आपको बैठना है, सारा काम करतें हुए, चाहें आप शाकाहारी हैं, या मांसाहारी, हो, स्त्री हो या पुरूष, शूद्र हो चाहें ब्राह्मण किसी जाती के हो, हिंदू हो या मुसलमान कुछ भी हों, आधा घंटे के लिए आप हृदय स्थित ईश्वर में श्रद्धा स्थिर करते हैं, और नाम का जप करते हैं, चाहें ॐ का जप करो या राम शब्द का जप करो, जीभ से, तो आप धार्मिक हैं, शाश्वत सनातन धर्म के उपासक हैं, यादि इतना नहीं करते तो चाहें, हम जितना भी पूजा पाठ कर लें, ब्रत उपवास कर लें, हमको राम नही मिलेंगे, और कुछ भले हीं मिल जाय। जो कामना लेकर मन्दिर में जाते हैं, कि नौकरी लग जाय, दुकान चल जाय, वो भले हीं हो जाय, वो हो जायेगा, लेकिन राम नही मिलेगा।
राम कब मिलेगा? जब हृदय स्थित ईश्वर में श्रद्धा स्थिर करोगे, आधा घंटा बैठकर नाम का जप करोगे,राम, राम राम, राम, चाहें ॐ ॐ ॐ, धुन लगा दो। जब सारा काम निपट जाय तब, तो दो चार महीने के अंदर जिनका नाम राम हैं, वो प्रकट हो जायेगा। जागृत हो जायेगा, आपका मार्गदर्शन करने लगेगा। भगवान क्या है, किधर चलना है, किधर नही चलना है, दस दिन बाद कौन सा खतरा आनेवाला है, भगवान स्वप्न मे बताने लगेंगे।
ये भगवान के जो बताने का तरीका हैं, अनुभव ये चार प्रकार का होता है। अंग फड़कन के द्वारा, शरीर के अंग फड़क कर अपको बताएंगे। दायां हाथ फड़क रहा है, तो मदद मिलेंगी। स्त्रियों का अंग स्पंदन विपरीत होता है, पुरुषो से। यादि स्त्रियों का दाहिना हाथ फड़क रहा है, तो मदद नहीं मिलेंगी। दाई आंख पुरुषो का फड़क रही है तो शुभ दर्शन, स्त्रियों का फड़क रही है, तो अशुभ दर्शन। दोनो के शरीर की बनावट बिपारित है। इसलिए अंग फड़कन भीं बिपरित हैं। जब सीता जी को राम जी का दर्शन होनेवाला था, पुष्पवाटीका में तो, बाम अंग फड़कन लगे, बायां अंग फड़कने लगा, राम जी का दर्शन हुआ। और रावण विजय के बाद जब रामजी अयोध्या लौटने वाले थे, भरत जी से मिलने वाले थे तो, भरत का कौन सा अंग फड़का?
*भरत नयन भुज दच्छिन फरकत बारहिं बार। जानि सगुन मन हरष अति लागे करन बिचार॥*
दायां भुजा फड़कने लगा, भगवान आ गए। इस अंग फड़कन का रामायण में वर्णन हैं, ये अनुभूति हैं, पहले शरीर स्तर पर भव क्या हैं, मुक्ति क्या हैं, अंग फड़क कर भगवान बताते हैं। बाई आंख फड़क रही हैं, मतलब भव हैं, संसार हैं। काम क्रोध राग द्वेष आनेवाला हैं। दाई आंख फड़क रही हैं, नाम का जप होनेवाला हैं, विवेक वैराग्य होनेवाला हैं, शुभ कार्य होनेवाला हैं। ये अंग स्पंदन के द्वारा अनुभव मिलता हैं। दूसरी अनुभूति स्वप्न के द्वारा। स्वप्न जगत में भी जो आप स्वप्न देखेंगे नाम जपने के बाद, सदगुरु के मिलने के बाद, स्वप्न के जगत को भी भगवान अपने हाथ ले लेते हैं। योगी, आधा घंटा नाम का जप करनेवाला, मनुष्य वही योगी हैं। केवल सन्यासी ही नहीं, आधा घंटे भी आप नाम जप करते हैं, आप योगी हैं। वो स्वप्न नही देखता अपना भविष्य देखता है। स्वप्न कौन देखता है?
मोह निशा सब सोवनहारा। देखहिं स्वप्न अनेक प्रकारा।।
और ये स्वप्न अनुभव कब होता हैं? जब आप मोह रूपी रात्रि से जागृत हो गए। जागृत होने का मतलब क्या हैं? नाम जीह जपि जागहि जोगी। जीभ से नाम जपने लग गए तो जागृत हो गए। जागृत होना है तो नाम का जप शुरू करो। शुप्त होना, मतलब नाम जप से कोई मतलब नही। तो समझो अचेत हों। तो जब नाम का जप चालू हो गया, तो ये स्वप्न अनुभव हो जाता हैं। अर्थात् भगवान स्वप्न में भी ये बताएंगे, कि ये संसार है, ये संसार से मुक्ति हैं। ये रावण हैं, ये राम हैं। इधर चलोगे तो रावण मिलेगा, इधर चलोगे तो राम मिलेगा। भगवान स्वप्न में भी बताने लगते है। तीसरा अनुभव, राम का जन्म क्या होता है? ध्यान के दृश्य में। इसको शुसुप्ति भी कहते है। घ्यान का मतलब होता हैं कि आपका शरीर जगता रहे, शरीर न सोए, स्वप्न कब आता है?
जब शरीर सो जाता हैं, और ये शुशुप्ति का अनुभव जिसको ध्यान का दृश्य कहते हैं, ये कब आता है? जब शरीर जागृत रहता हैं। शरीर बैठा हैं ध्यान में, चित्त शांत हो गया नाम जपते जपते, सो गया मन तब भगवान, आपको दृश्य बताएंगे, जैसे स्वप्न में बताते थे, वैसे ही सामने जैसे आप टीवी देखते हैं, वैसे ही दृश्य आयेगा। उस दृश्य में त्रिकालज्ञता होती हैं, भगवान तुरंत बताते हैं कि अगले दस मिनट बाद क्या होनेवाला है? और वो अकाट्य सत्य होता हैं। जो ध्यान में दिखाई देगा, वही घटेगा। इसलिए ये सुशुप्ति संबंधी अनुभव हैं। और चौथा क्या हैं ? समसुरा संबंधी अनुभव। ये सिद्ध महापुरुषों को मिलता हैं। जो राम के स्वरूप हो गए है। शंकर स्वरूप हो गए हैं, उनको मिलता हैं।जब शंकर जी राम का ध्यान किया तो देखा कि जो पार्वती ने प्रश्न पूछा हैं, वो इसका प्रश्न हैं भी कि नहीं? तो,
हर हियँ रामचरित सब आए। प्रेम पुलक लोचन जल छाए॥
जैसे ही ध्यान किया, भगवान का रूप आया, और पता चला कि ये पार्वती का प्रश्न ही नही है।
किन्हऊ प्रश्न जगत हित लागी, तो ये जो समसूरा अनुभव हैं, जब कोई सिद्ध हो जाता हैं, भगवान की प्राप्ती कर लेता हैं, तो चलते फिरते, उठते बैठते जैसे आप टीवी देखते हैं, वैसे ही तत्वदर्शी महापुरुष, जो राम के स्वरूप हो गए हैं,उन्हों आंखो से देखते हैं।
क्या घटित होनेवाला है, सब दिखाई देता हैं। इसको कहते हैं अनुभव रूपी राम। इसी में योगी रमण करते हैं। ये हैं भगवान की जागृति। ये ऐसी भी बात नहीं हैं कि केवल महात्माओं के लिए हैं, अशोक वाटिका में सीता जी रहती थीं, और अशोक वाटिका में सीता जी के पहरे में कौन रहता था? त्रिजटा नाम की राक्षसी रहती थीं। जैसा कि कहा है तुलसीदास जी ने, कि ये पुण्यात्मा के अंदर प्रकट होगा, ऐसी बात नहीं, देवताओ के अंदर प्रकट होगा ऐसी बात नहीं, साधू के अंदर, हिंदुओं के अंदर प्रकट होगा ऐसी बात नहीं,
जिन्ह रघुनाथ चरन रति मानी। तिन्ह की यह गति प्रगट भवानी।।
जो भी प्रेम करेगा हृदय स्थित राम से, उसको ही राम तीनों कालों की जानकारी देने लगेंगे। त्रिजटा को आप देखे, जब सीता जी व्याकुल होने लगी, और कहने लगी कि अब तो लकड़ी ले आओ जल जाना ही सार्थक हैं, जीवित रहना नहीं। रावण रोज आकर दण्डित करता हैं, त्रास देता हैं, ऐसी जिंदगी से मर जाना ही अच्छा हैं। जब ये विचार आया, तो त्रिजटा को कहा माता सीता ने, जाओ लकड़ी लेकर आओ मै जल जाना चाहती हू। तो त्रिजटा दुखी हो गई। त्रिजटा ने कहा कि ये भगवान की अर्धांगिनी हैं, भगवान की भक्त है दिन रात राम जप रही है, आखिर है क्या? क्या इसको राम मिलेंगे या नही मिलेंगे? या सचमुच में मर जायेगी।
भगवान ने त्रिजटा को बताया।
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥
क्या देखी?
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी। खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा।।
एही बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई।।
क्या देखा त्रिजटा ने? कि रावण की शीश कट गए हैं। और लंका विभीषण को प्राप्त हो गई हैं। राक्षसों का संहार हो गया हैं।
*ये सपना मै कहहु बिचारी, होईहही सत्य गए दिन चारी ।।*
त्रिजटा ने अपना सपना सीता को बताया, और कहा कि चार दिन के अंदर ये सपना सत्य हो जाएगा, देख लेना। मुझको राम ने बताया हैं। सीता जी राम का जप करती थीं, उनको पता नही चला, त्रिजटा राक्षसी थी, लेकिन राम के चरणो में प्रेम था,बाहर के राम से तो दुश्मनी थी, लेकिन अंदर के राम हृदय स्थित राम के चरणो में प्रेम था। नाम का जप करती थीं। राम चरण रत,
प्रेम कब होता हैं? जब बार बार आप किसी को देखो। तो नाम का जप त्रिजटा बार बार जपती थी। इसलिए भगवान ने तीनों कालों की जानकारी त्रिजटा को दी। भविष्य में क्या होने वाला हैं, सारा भविष्य, रावण मारा जायेगा, त्रिजटा को पता चल गया। वो एक स्त्री थी, और राक्षसी भी। इसलिए ऐसी बात नहीं हैं कि राम किसी विषेश व्यक्ती के लिए या हिंदुओं के लिए हैं। दुनियां में कोई भी हृदय स्थित राम को मानता हैं, इस राम को, नाम का जप करता हैं, प्रेम करता हैं, उसके अंदर अपनी त्रिलकालज्ञता भगवान प्रकट कर देते हैं। अपना रूप प्रकट कर देते हैं। उसको ही मार्ग दर्शन करने लगते है। इस दृष्टी से यह हृदय स्थित ईश्वर प्रत्येक मनुष्य मात्र के लिए हैं। ये राम था, और पूरी दुनिया उसकी उपासक थी। धीरे धीरे हमलोगो ने एक निश्चित स्थान में एक कबीले का, एक कम्युनिटी का देवता बना दिया। तब फिर राम में भेद हो गया, कौन किसको माने? तो इस ईश्वर में श्रद्धा स्थिर करते हैं,
जो भी हृदय में श्रद्धा स्थिर करता है, एक राम को मानता है, वो राम का ही उपासक हैं। जीसस कहते हैं, परमेश्वर एक हैं, तो वो राम के ही शिष्य है, राम के ही अनुयायी हैं। उन्होंने परमेश्वर किसको कहा हैं? पारब्रह्म परमेश्वर सबके प्राणपति, राम को कहा गया।
जीसस कहते हैं,परमेश्वर तो राम को ही कहते हे। मुहम्मद कहते हैं, अल्लाह, जर्रे जर्रे में व्याप्त हैं। सबके दिल की जानता हैं। दिल में कौन रहता हैं? वही राम रहता हैं। उसी राम को मुहम्मद अल्लाह कहते है। लेकिन ईसाई और मुसलमान उस राम को नही जानते हैं। क्योंकी व्यवस्थाएं बदल गई। अनुयायी कभी उस साधना को नहीं जानता। वो पूरी साधना गीता में सुरक्षित हैं, रामचरित मानस में सुरक्षित है। उस राम की प्राप्ती कैसे करना है, राम का जप कैसे करना है? ये विधि केवल गीता में और रामचरित मानस में सुरक्षित हैं। ये न कुरान में हैं, और न ही बाइबल में हैं। क्योंकी रामचरित मानस और गीता के अनुसार आप मनुष्य हैं। चाहें आप किसी भी धर्म के हैं। नाम जपेंगे तो भगवान प्रकट हो जायेंगे। मुसलमान होना हैं, तो कुरान मानना पड़ेगा, उसके नियम मानने पड़ेंगे, तब मुसलमान होंगे। लेकिन गीता और रामायण के अनुसार आपको हिंदू होना जरूरी नहीं, हैं, आप मुसलमान होते हुए भी नाम जपोगे तो भी आपके अंदर राम प्रकट हो जायेंगे। ईसाई कहते हैं, बाइबल के अनुसार चलो तब आपको परमात्मा मिलेगा, ऐसी बात गीता और रामायण नही करती। आप ईसाई हो तो भी आप इंग्लिश में राम राम जपते हो तब पर भी आपको राम मिलेगा। इसलिए ये किसी वर्ग का या किसी व्यक्ती विशेष का नही हैं, राम। कण कण में व्याप्त है।
*सब मम प्रिय सब मम उपजाए। सब ते अधिक मनुज मोहि भाए।।*
क्या कहते है राम? सब मुझे प्रिय हैं,
सबकी उत्पत्ति मैंने की हैं, और सबसे प्रिय मनुज मोहि भाए, जो मनुष्य मात्र है, उसका ये राम हैं। इस राम की यदि हम स्थापना करते हैं, तो इस राम की स्थापना हमे कहां करनी हैं? इस राम का मंदिर प्रत्येक मनुष्य का शरीर हैं, प्रत्येक मनुष्य का हृदय है। ये राम कहां रहता हैं? आपके सबके हृदय के मन्दिर मे। और इस दृष्टी से जब हम ये कहेंगे कि राम प्रत्येक मनुष्य के हृदय में हैं , तो सब मानने को तैयार हैं, लेकिन यदि हम कहें कि राम किसी समय हुए आज नहीं हैं, तो भगवान क्या हैं, जो तीनों कालों में हैं। राम के जन्म से पहले भी राम था। आकाशवाणी हुई तब राम का अवतार हुआ। किसने आकाशवाणी दी देवताओं को? उसी राम ने जो दशरथ के यहां पैदा हुआ। और पैदा होने से पहले भी थे। आज सामने नही हैं, तो भी वो राम हैं। कहां है? हमारे सबके हृदय में प्रसुप्त है। जैसे लाइट जल रही हैं, चाहें सत्संग सुनो या गाना मना नही करेगी, वैसे ही वो राम हमारे सबके अंदर हैं। लोग पूछते हैं कि राम सबके अन्दर हैं, तो लोग पाप क्यों करते हैं? जैसे ये लाइट जल रही है, चाहें रामायण पढ़ो या उपन्यास पढ़ो फिल्म देखो लाइट मना नहीं करेंगी। ऐसे ही ईश्वर हमारे सबके अंदर हैं, अंदर रहने का मतलब ये नहीं है, कि वो पाप और पुण्य का भागीदार हैं। जिस दिन से हम मानने लगेंगे उस ह्रदय स्थित ईश्वर को, अंदर के राम को, उसी दिन से हमारी पाप करने वाली वृत्ति अपने आप खत्म होने लगेंगी। अभी हम मानते ही नही हैं। अंदर के राम को हमने माना ही कब? कि वो पापो को खत्म करें, या उसकी प्रेरणा से पाप करना मनुष्य बंद करें, जब मानेंगे, तो मनुष्य पाप करना बन्द कर देगा। इसलिए राम हैं, लेकिन उसकी अनुभूति हमने कहां की, हमने माना कहां? अखण्ड रामायण का पाठ होता हैं।
व्यापक एक ब्रह्म अविनाशी
सत चेतन घन आनंद राशी।
अस प्रभु हृदय अछत अविकारी।
सकल जीव जग दीन दुखारी।
ये चौपाई रोज पढ़ते है सब। कहां रहता हैं? हृदय में, अविकारी हैं। हम उसको उसको कहां मानते हैं? बाहर मानते हैं। रामलीला करते हैं, बाहर मंदिर में पूजा,मंदिर बनाते हैं। ये गलत नहीं हैं, मंदिर हमे बनाना हैं, क्योंकी वो जो राम थे, उनके अन्दर भीं वो ब्रह्म वो परमात्मा अवतार लिया। वो हमारी संस्कृती, हमारे पूर्वज है, हमारे आदर्श हैं, हमारे भगवान हैं, इसलिए मन्दिर तो बनना ही चाहिए। लेकिन इसका ये मतलब ये नही कि, अपने अंदर वाले राम को भूल जाओ। उस बाहर मन्दिर वाले राम से हमे प्रेरणा लेना हैं कि वो राम हमारे अंदर हैं। और उसको हमे प्राप्त करना हैं,वो भी जरूरी हैं। लेकिन अपने अंदर जागृत नहीं करेंगे, प्राप्त नहीं करेंगे तो मन्दिर हैं, पूजते भी हैं लोग,लेकिन वही दस हजार रुपए लेकर इसाई हो जाते हैं। जब अन्दर के राम से जुड़ जायेंगे, तो अन्दर का राम बात करता हैं, त्रिकालज्ञ हैं, वो बता देगा कि आपके पास कौन आ रहा हैं, ईसाई बनाने, आपको पहले ही पता चल जायेंगा, और जिसको भगवान प्रेरणा कर रहा है, उसको कोई ईसाई बना सकता है? तो अंदर के राम में श्रद्धा होगी, तो कोई ईसाई बना नहीं सकता। और बाहर तो हम श्रद्धा करते हैं, ईसाई बनते हैं। ये अन्तर हैं। इसलिए राम को हमे कहां स्थापित करना हैं? मन्दिर हमे अवश्य बनाना हैं। लेकिन अपने हृदय में भी मंदिर बनाना हैं। लेकिन अपने हृदय के राम में भी श्रध्दा स्थिर करना हैं। ताकि हमको कोई धर्मांतरित नहीं करने पाए। परिवर्तन न करने पाए। लोग कहते हैं, कि धर्म बदल गया,कागभुशुण्डि जी राम का भजन करते थे, उनको श्राप मिल गया, एक हजार जन्म अजगर हो जाओ। जिसका भजन कर रहे थे, वही भगवान श्राप दे दिया। हजार जन्म तक अजगर हुए, अजगर होकर ब्राह्मण के घर जन्मे। हजार जन्म पहले जो साधना उनको उनके गुरू महाराज ने बताया था, जो नाम का जप वो करते थे, हजार जन्म बाद वही धर्म वही साधना जागृत हो गई। कैसे जागृत हो गई?
*गुर के बचन सुरति करि राम चरन मनु लाग। रघुपति जस गावत फिरउँ छन छन नव अनुराग॥*
हजार जन्म पहले जो नाम का जप करते थे, अनायास हजार जन्म बाद वही साधना, वहीं धर्म जागृत हो गया।
क्योंकि उनको शंकर जी का आशिर्वाद था, कौनहू जनम मिटही नहीं ग्याना। और यहां धर्म बदल जा रहा हैं, दस हजार रुपए में धर्म बदल जा रहा है, पानी पी लिया किसी के यहां धर्म बदल जा रहा है।
कागभुशुण्डि जी को हजार जन्म लेने पड़े धर्म नही बदला,राम नही बदले। यहां ईसाई लोग दस हजार रूपए देकर धर्म बदल दे हैं। कौन सा राम,? तो इसलिए हृदय स्थित ईश्वर राम में अपनी श्रद्धा को स्थिर करो, अपने अंदर के राम को मानना इसलिए जरूरी है, कि कोई हमारा धर्म परिवर्तन न करने पाए। बाहर तो मंदिर भी थे, लेकिन फिर भी लोग ईसाई मुसलमान बनते रहे। राम त्रेता में हुए,तब न इसाई थे न मुसलमान थे। उनकी पूजा भी होती रहीं और लोग मन्दिर भी बनाते रहे। और आज भी लोग पूजा कर रहें हैं ,और लोग पैसा लेकर ईसाई हो रहे हैं, घटना रोज घट रही है। कब रुकेगा? जब हम अंदर के राम को मानेंगे। वो त्रिकालज्ञ हैं, अपको पहले ही भगवान बता देंगे कि दुष्ट आ रहा है, धर्म परिवर्तन कराने वाला। फिर आपको कोई नही बदल सकता। दो करोड़ देकर भी नहीं बदल सकता। क्योंकि राम अपरिवर्तनशील है। राम उसका नाम है जिसका परिवर्तन होता ही नहीं। धर्म उसका नाम है जिसका परिवर्तन होता ही नहीं। हजार जन्म के बाद भीं कागभुशुण्डि जी का राम नही बदला,धर्म नही बदला, साधना नहीं बदली। धर्म अपरिवर्तनशील हैं। बुद्ध को 200 वर्ष लेने पड़े धर्म नही बदला। जड़ भरत को मृगा की योनी में जाना पड़ा, धर्म नही बदला। भगवान महाबीर को 24 जन्म लेने पड़े धर्म नही बदला, क्योंकि हृदय स्थित राम के उपासक थे, इसलिए नही बदला। हमारा क्यों बदल जा रहा हैं? क्योंकी हम हृदय स्थित राम को जानते ही नहीं। रामायण पढ़ते हैं कि, अस प्रभु हृदय अक्षत अविकारि , हृदय में ईश्वर है, रोज पढ़ेंगे, लेकिन हृदय में मानेंगे नहीं, इसका ही दुष्परिणाम हैं। करना क्या हैं? जो लिखा है रामायण में मानो, जो लिखा हैं, गीता में ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। उसको मानो, भगवान की बात मानो, जब हम उनकी पूजा करतें हैं, मन्दिर बनातें हैं, तो उनकी आदेश को क्यों नहीं मानते। वो कह रहें हैं कि मैं हृदय में हूं, तो मानों इसको। जिस दिन मान लोगे उसी दिन प्रकट हो जायेंगे। और जब भगवान की जागृति हो गईं, प्रकट हो गए, तो उसका नाश नहीं किया जा सकता। श्रृष्टि में कोई ऐसा व्यक्ति नही है, शक्ती नहीं हैं,जो उसका धर्म बदल दे। तो क्या बदल रहा है, एक व्यवस्था बदल रही है, एक परम्परा बदल रही हैं। धर्म नहीं बदल रहा है, एक प्रकार की जीवन शैली बदल रही हैं। लोग धर्म को जानते ही नहीं है, इसलिए बदल रहा हैं, लोग राम को जानते ही नहीं है, इसलिए छोड़ रहें हैं। इसलिए हृदय स्थित ईश्वर में श्रद्धा स्थिर करना हैं। जब त्रिजटा को भगवान बता सकते हैं तीनों कालों की जानकारी, तो क्या आप लोगों को नही बता सकते। जब त्रिजटा राक्षसी हैं, उसको बता रहें हैं, तो आप को भी बताएंगे। करना क्या हैं? आधा घंटा बैठकर नाम का जप करो, चाहें ॐ का करो चाहे राम शब्द का। ॐ का जप करना है, तो जीभ से करो जैसे,ॐ ॐ ॐ, श्रद्धा स्थिर करके, फिर कंठ से करो, फिर श्वास को देखो,
श्वास कब अंदर आई ॐ, कब बाहर गईं सुनो ॐ, जैसे ही मन रुकेगा ॐ किसका नाम है वो प्रकट हो जायेगा। राम किसका नाम हैं,उसके लक्षण प्रकट हो जायेंगे। ये राम का जन्म हैं। ये जन्म जबतक हमारे अंदर नही होगा, तब तक रामनवमी तो हम मनाएंगे , लेकिन जीवन सार्थक नहीं होगा। राम को अपने अंदर प्रकट करना हैं। प्रत्येक व्यक्ति के राम जन्म ले ले। तो रामनवमी जब प्रत्येक व्यक्ति मनाने लगेगा तो पहले भारत राम का भक्त होगा, फिर पूरी दुनियां इस राम का भक्त हो जायेगा। इस दृष्टी से राम प्रत्येक मनुष्य मात्र का पूजनीय ईष्ट होगा। प्रत्येक धर्म के व्यक्ती का पूज्यनीय ईष्ट हैं,पूज्यनीय देव हैं, हृदय का राम।इसलिए रामचरित मानस आपके अंतःकरण कि घटना हैं। भगवान का अवतार जरूर हुआ, घटना नहीं घटती तो हम दृष्टांत कहां से लाते। पर उस राम के अंदर भी वही परमब्रह्म परमात्मा प्रकट हुआ, जो उनके अन्दर पहले से था। कौशल्या ने जब देखा, कि राम का जन्म हुआ हैं, तो माता कौशल्या आश्चर्य में पड़ गईं। फिर भगवान ने अपना महिमा दिखाया।
.देखरावा मातहि निज अद्भुत रूप अखंड। रोम रोम प्रति लागे कोटि कोटि ब्रह्मंड॥
जब जन्म हुआ बालक का तो कौशल्या भ्रम में पड़ गईं। कि जिसकी महिमा हमने सुनी हैं, वहीं है क्या? तो उसी बच्चे ने रूप दिखा दिया। क्या दिखाया? करोड़ों, करोड़ों ब्रह्मांड सारी श्रृष्टि उसी बच्चे के अंदर माता कौशल्या ने देखा। और क्या देखा?
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै॥
जो जन्म लिया है,वो मेरे अंदर पहले से ही था, मेरे उर का ही वासी हैं। जिस परमात्मा का निवास मेरे हृदय के अंदर था, बाहर वही प्रकट हुआ। दूसरा कोई राम नही था। राम का जो अवतार हुआ, वही राम प्रकट हुआ जो कण कण में व्याप्त पहले से था। इसलिए राम भगवान के अवतार , राम साक्षात परम ब्रह्म के अवतार। लेकिन इसका मतलब ये नही हैं कि अब क्या हैं? अब वो राम कहां हैं, अभी भी वो आपके अंदर हैं। कल्प कल्प प्रति प्रभु अवतरेहु। जब धर्म की हानि होती हैं, असुर बढ़ते हैं, जब ग्लानी होगी किसी के अंदर, र्तब तब प्रभु धरी विविध शरीरा, जिसके अंदर ग्लानी होगी बुद्ध के अंदर ग्लानी हुई,भगवान ने धारण किया, भगवान प्रकट हुए कि नहीं। मनु के अंदर ग्लानी हुई भगवान प्रकट हुए। जिसके अंदर भी ग्लानि हुई, भगवान जागृत हो जायेंगे। इसलिए ग्लानि के साथ ही वह परमात्मा प्रकट होता हैं। आपके हृदय में रहता हैं, जैसे ही श्रद्धा स्थिर हुई नाम का जप आरंभ हुआ, भगवान प्रकट हो जायेगा, जन्म ले लेगा। इस दृष्टी से हृदय स्थित ईश्वर बाहर भी जो राम का अवतार हुआ, वही भगवान जो उनके हृदय के अन्दर थे, उसी परमात्मा ने अवतार लिया। वहीं परमात्मा आपके अंदर है। आपके अंदर भी जब राम का जन्म होगा, जब नाम जप करेंगे तो वही परमात्मा वहीं राम आपके अंदर प्रकट हो जायेगा। जव ये त्रिकालज्ञता जागृति आ जाय, अनुभव जागृत हो जाय, भगवान बताने लगे तो समझो राम का जन्म हो गया। तो जन्म होगा, तो समझो काम भी होगा। रावण भी समाप्त होगा। संसार के प्रति जो दुख हैं,मोह हैं वो भी समाप्त होगा। फिर रामराज्य की स्थापना। तो ये रामचरित मानस राम को प्राप्त करने की साधना हैं। हृदय स्थित ईश्वर को जागृत करने की साधना हैं, इसका नाम हैं, *रामचरित मानस।*
।। ॐ।।